सदाबहार >> प्रेमाश्रम (उपन्यास) प्रेमाश्रम (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘प्रेमाश्रम’ भारत के तेज और गहरे होते हुए राष्ट्रीय संघर्षों की पृष्ठभूमि में लिखा गया उपन्यास है
राय– कैसरबाग में आज बैंड होगा। हवा कितनी प्यारी है!
ज्ञान– मुझे आज क्षमा कीजिये।
राय– अच्छी बात है, मैं भी न जाऊँगा। आजकल कोई लेख लिख रहे हो या नहीं?
ज्ञान– जी नहीं, इधर तो कुछ नहीं लिखा।
राय– तो अब कुछ लिखो। विषय और सामग्री मैं देता हूँ। सिपाही की तलवार में मोरचा न लगना चाहिए। पहला लेख तो इस साल के बजट पर लिख दो और दूसरा गायत्री पर।
ज्ञान– मैंने तो आजकल कोई बजट सम्बन्धी लेख आद्योपान्त पढ़ा नहीं, उस पर कलम क्योंकर उठाऊँ।
राय– अजी, तो उसमें करना ही क्या है? बजट को कौन पढ़ता है और कौन समझता है। आप केवल शिक्षा के लिए और धन की आवश्यकता दिखाइये और शिक्षा के महत्त्व का थोड़ा-सा उल्लेख कीजिए, स्वास्थ्य-रक्षा के लिए और धन माँगिये और उसके मोटे-मोटे नियमों पर दो चार टिप्पणियाँ कर दीजिये। पुलिस के व्यय में वृद्धि अवश्य ही हुई होगी, मानी हुई बात है। आप उसमें कमी पर जोर दीजिए। और नयी नहरें निकालने की आवश्यकता दिखाकर लेख समाप्त कर दीजिये। बस, अच्छी-खासी बजट की समालोचना हो गयी। लेकिन यह बातें ऐसे विनम्र शब्दों में लिखिए और अर्थसचिव की योग्यता की और कार्यपटुता की ऐसी प्रशंसा कीजिए की वह बुलबुल हो जायँ और समझें कि मैंने उसके मन्तव्यों पर खूब विचार किया है। शैली तो आपकी सजीव है ही, इतना यत्न और कीजियेगा कि एक-एक शब्द से मेरी बहुज्ञता और पाण्डित्य टपके। इतना बहुत है। हमारा कोई प्रस्ताव माना तो जायेगा नहीं, फिर बजट के लेखों को पढ़ना और उस पर विचार करना व्यर्थ है।
ज्ञान– और गायत्री देवी के विषय में क्या लिखना होगा?
राय– बस, एक संक्षिप्त-सा जीवन वृत्तान्त हो। कुछ मेरे कुल का, कुछ उसके कुल का हाल लिखिये, उसकी शिक्षा का जिक्र कीजिए। फिर उसके पति का मृत्यु का वर्णन करने के बाद उसके सुप्रबन्ध और प्रजा-रंजन का जरा बढ़ाकर विस्तार के साथ उल्लेख कीजिए। गत तीन वर्षों में विविध कामों में उसने जितने चन्दें दिये हैं और अपने असामियों की सुदशा के लिए जो व्यवस्थाएँ की हैं, उनके नोट मेरे पास मौजूद हैं। उससे आपको बहुत मदद मिलेगी! उस ढाँचे को सजीव और सुन्दर बनाना आपका काम है। अन्त में लिखिएगा कि ऐसी सुयोग्य और विदुषी महिला का अब तक किसी पद से सम्मानित न होना, शासनकर्ताओं की गुणग्राहकता का परिचय नहीं देता है। सरकार का कर्त्तव्य है कि उन्हें किसी उचित उपाधि से विभूषित करके सत्कार्यों में प्रोत्साहित करें, लेकिन जो कुछ लिखिए जल्द लिखिए, विलम्ब से काम बिगड़ जायेगा।
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