सदाबहार >> रंगभूमि (उपन्यास) रंगभूमि (उपन्यास)प्रेमचन्द
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नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन में उपस्थित मद्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है
मिस्टर जोजफ क्लार्क जिला के हाकिम थे। अभी थोड़े ही दिनों से यहां आए थे। मिसेज सेवक ने उनसे रब्त-जब्त पैदा कर लिया था। वास्तव में उन्होंने क्लार्क को सोफ़ी के लिए चुना था। दो-एक बार उन्हें अपने घर बुला भी चुकी थीं। गृह-निर्वासन से पहले दो-तीन बार सोफ़ी से उनकी मुलाकात भी हो चुकी थी; किंतु वह उनकी ओर विशेष आकृष्ट न हुई थी। तो भी मिसेज सेवक इस विषय में अभी निराश न हुई थीं। क्लार्क से कहती थीं–सोफ़ी मेहमानी करने गई है। इस प्रकार अवसर पाकर उनकी प्रेमाग्नि को भड़काती रहती थी।
जॉन सेवक ने लज्जित होकर कहा–मैं क्या जानता था, यह महाशय भी दगा देंगें। यहां उनकी बड़ी ख्याति है, अपने वचन के पक्के समझे जाते हैं। खैर, कोई मुजायका नहीं। अब कोई दूसरा उपाय सोचना पड़ेगा।
मिसेज सेवक–मैं मिस्टर क्लार्क से कहूंगी। पादरी साहब से भी सिफारिश कराऊंगी।
जॉन सेवक–मिस्टर क्लार्क को म्युनिसिपैलिटी के मुआमलों में हस्तेक्षेप करने का अधिकार नहीं।
जॉन सेवक इसी चिंता में पड़े हुए थे कि इस हंगामे की खबर मिली, सन्नाटे में आ गए। पुलिस को रिपोर्ट की। दूसरे दिन गोदाम जाने का विचार कर ही रहे थे कि ताहिर अली लाठी टेकते हुए आ पहुंचे। आते-आते एक कुरसी पर बैठ गए। इक्के के हचकोलों ने अधमुआ-सा कर दिया था।
मिसेज सेवक ने अंगरेजी में कहा–कैसी सूरत बना ली है, मानों विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा है !
जॉन सेवक–कहिए मुंशीजी, मालूम होता है, आपको बहुत चोट आई। मुझे इसका बड़ा दुःख है।
ताहिर–हुजूर, कुछ न पूछिए, कंबख्तों ने मार डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
जॉन सेवक–और इन्हीं दुष्टों की आप मुझसे सिफारिश कर रहे थे।
ताहिर–हुजूर, अपनी खता की बहुत सजा पा चुका। मुझे ऐसा मालूम होता है कि मेरी गरदन की हड्डी पर जरब आ गया है।
जॉन सेवक–यह आपकी भूल है। हड्डी टूट जाना कोई मामूली बात नहीं है। आप यहाँ तक किसी तरह न आ सकते थे। चोट जरूर आई है, मगर दो-चार रोज मालिश कर लेने से आराम हो जाएगा। आखिर यह मारपीट हुई क्यों?
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