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रंगभूमि (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :1153
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8600
आईएसबीएन :978-1-61301-119

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नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन में उपस्थित मद्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है


सूरदास उठ खड़ा हुआ, और विजय गर्व की तरंग में राख के ढेर को दोनों हाथों से उड़ाने लगा।

आवेग में हम उद्दिष्ट स्थान से आगे निकल जाते हैं। वह संयम कहां है, जो शत्रु पर विजय पाने के बाद तलवार को म्यान में कर ले?

एक क्षण में मिठुआ, घीसू और मुहल्ले के बीसों लड़के आकर इस भस्म-स्तूप के चारों ओर जमा हो गए और मारे प्रश्नों के सूरदास को परेशान कर दिया। उसे राख फेंकते देखकर सबों को खेल हाथ आया। राख की वर्षा होने लगी। दम-के-दम में सारी राख बिखर गई, भूमि पर केवल काला निशान रह गया।

मिठुआ ने पूछा–दादा, अब हम रहेंगे कहां?

सूरदास–दूसरा घर बनाएंगे।

मिठुआ–और कोई फिर आग लगा दे?

सूरदास–तो फिर बनाएंगे।

मिठुआ–और फिर लगा दे?

सूरदास–तो हम भी फिर बनाएंगे।

मिठुआ–और कोई हजार बार लगा दे?

सूरदास–तो हम हजार बार बनाएंगे। बालकों को संख्याओं से विशेष रुचि होती है।

मिठुआ ने फिर पूछा–और जो कोई सौ लाख बार लगा दे?

सूरदास ने उसी बालोचित सरलता से उत्तर दिया–तो हम भी सौ लाख बार बनाएंगे।

जब वहां राख की चुटकी भी न रही, तो सब लड़के किसी दूसरे खेल की तलाश में दौड़े। दिन अच्छी तरह निकल आया था। सूरदास ने भी लकड़ी संभाली और सड़क की तरफ चला। उधर जगधर वहां से नायकराम के पास गया; और यहां भी यह वृत्तांत सुनाया। पंडा ने कहा–मैं भैरों के बाप से रुपए वसूल करूंगा, जाता कहां है, उसकी हड्डियों से रुपए निकालकर दम लूंगा, अंधा अपने मुंह से चाहे कुछ कहे या न कहे।

जगधर वहां से बजरंगी, दयागिरि, ठाकुरदीन आदि मुहल्ले के सब छोटे-बड़े आदमियों से मिला और यह कथा सुनाई। आवश्यकतानुसार यथार्थ घटना में नमक-मिर्च भी लगाता जाता था। सारा मुहल्ला भैरों का दुश्मन हो गया।

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