सदाबहार >> रंगभूमि (उपन्यास) रंगभूमि (उपन्यास)प्रेमचन्द
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नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन में उपस्थित मद्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है
सूरदास तो सड़क के किनारे राहगीरों की जय मना रहा था, मुहल्लेवालों ने उसकी झोंपड़ी बसानी शुरू की। किसी ने फूस दिया, किसी ने बांस दिए, किसी ने धरन दी, कई आदमी झोंपड़ी बनाने में लग गए। जगधर ही इस संगठन का प्रधानमंत्री था। अपने जीवन में शायद ही उसने इतना सदुत्साह दिखाया हो। ईर्ष्या में तम-ही-तम नहीं होता, कुछ सत् भी होता है। संध्या तक झोंपड़ी तैयार हो गई, पहले से कहीं ज्यादा बड़ी और पायदार। जमुनी ने मिट्टी के दो घड़े और दो-तीन हांडियां लाकर रख दीं। एक चूल्हा भी बना दिया। सबने गुट कर रखा था कि सूरदास को झोंपड़ी बनने की जरा भी खबर न हो। जब वह शाम को आए, तो घर देखकर चकित हो जाए, और पूछने लगे, किसने बनाई, तब सब लोग कहें, आप-ही-आप तैयार हो गई।
१२
प्रभु सेवक ताहिर अली के साथ चले, तो पिता पर झल्लाए हुए थे–यह मुझे कोल्हू का बैल बनाना चाहते हैं। आठों पहर तंबाखू ही के नशे में डूबा पड़ा रहूं, अधिकारियों की चौखट पर मस्तक रगड़ूं, हिस्से बेचता फिरूं, पत्रों में विज्ञापन छपवाऊं, बस सिगरेट की डिबिया बन जाऊं। यह मुझसे नहीं हो सकता। मैं धन कमाने की कल नहीं हूं, मनुष्य हूं, धन-लिप्सा अभी तक मेरे भावों को कुचल नहीं पाई है। अगर मैं अपनी ईश्वरदत्त रचना-शक्ति से काम न लूं, तो यह मेरी कृतध्नता होगी। प्रकृति ने मुझे धनोपार्जन के लिए बनाया ही नहीं; नहीं तो मुझे इन भावों से क्यों भूषित करती। कहते तो हैं कि अब मुझे धन की क्या चिंता, थोड़े दिनों का मेहमान हूं, मानों ये सब तैयारियां मेरे लिए हो रही हैं। लेकिन अभी कह दूं कि आप मेरे लिए यह कष्ट न उठाइए, मैं जिस दशा में हूं, उसी में प्रसन्न हूं, तो कुहराम मच जाए ! अच्छी विपत्ति गले पड़ी, जाकर देहातियों पर रोब जमाइए, उन्हें धमकाइए, उनको गालियाँ सुनाइए। क्यों? इन सबों ने कोई नई बात नहीं की है। कोई उनकी जायदाद पर जबरदस्ती हाथ बढ़ाएगा, तो वे लड़ने पर उतारू हो ही जाएंगे। अपने स्वत्वों की रक्षा करने का उनके पास और साधन ही क्या है? मेरे मकान पर आज कोई अधिकार करना चाहे, तो मैं कभी चुपचाप न बैठूंगा। धैर्य तो नैराश्य की अंतिम अवस्था का नाम है। जब तक हम निरुपाय नहीं हो जाते, धैर्य की शरण नहीं लेते। इन मियांजी को भी जरा-सी चोट आ गई, तो फरियाद लेकर पहुंचे। खुशामदी है, चापलूसी से अपना विश्वास जमाना चाहता है। आपको भी गरीबों पर रोब जमाने की धुन सवार होगी। मिलकर नहीं रहते बनता। पापा की भी यही इच्छा है। खुदा करे, सब-के-सब बिगड़ खड़े हों, गोदाम में आग लगा दें और इस महाशय की ऐसी खबर लें कि यहां से भागते ही बने। ताहिर अली से सरोष होकर बोले–क्या बात हुई कि सब-के-सब बिगड़ खड़े हुए?
ताहिर–हुजूर, बिल्कुल बेसबब। मैं तो खुद ही इन सबों से जान बचाता रहता हूं।
प्रभु सेवक–किसी कार्य के लिए कारण का होना आवश्यक है; पर आज मालूम हुआ कि वह अभी दार्शनिक रहस्य है, क्यों?
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