सदाबहार >> रंगभूमि (उपन्यास) रंगभूमि (उपन्यास)प्रेमचन्द
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नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन में उपस्थित मद्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है
प्रभु सेवक–तेरे साथ सूरदास और मुहल्ले के और लोग न थे; झूठ बोलता है !
बजरंगी–झूठ नहीं बोलता, किसी का दबैल नहीं हूं। मेरे साथ न सूरदास था और न मोहल्ले का कोई दूसरा आदमी। मैं अकेला था।
घीसू ने हांक लगाई–पादड़ी ! पादड़ी !
मिठुआ बोला–पादड़ी आया, पादड़ी आया !
दोनों अपने हमजोलियों को यह आनंद-समाचार सुनाने दौड़े, पादड़ी गाएगा, तस्वीरें दिखाएगा, किताबे देंगा, मिठाइयां और पैसे बांटेगा। लड़कों ने सुना, तो वे भी इस लूट का माल बंटाने दौड़े। एक क्षण में वहां बीसों बालक जमा हो गए। शहर के दूरवर्ती मोहल्लों में अंगरेजी वस्त्रधारी पुरुष पादड़ी का पर्याय है। नायकराम भंग पीकर बैठे थे, पादड़ी का नाम सुनते ही उठे, उनकी बेसुरी तानों में उन्हें विशेष आनंद मिलता था। ठाकुरदीन ने भी दुकान छोड़ दी, उन्हें पादड़ियों से धार्मिक वाद-विवाद करने की लत थी। अपना धर्मज्ञान प्रकट करने के ऐसे सुंदर अवसर पाकर न छोड़ते थे। दयागिरि भी आ पहुंचे, पर जब लोग पहुंचे तो भेद फिटन के पास खुला। प्रभु सेवक बजरंगी से कह रहे थे–तुम्हारी शामत न आए, नहीं तो साहब तुम्हें तबाह कर देंगे। किसी काम के न रहोगे। तुम्हारी इतनी मजाल !
बजरंगी इसका जवाब देना ही चाहता था कि नायकराम ने आगे बढ़कर कहा–उस पर आप क्यों बिगड़ते हैं, फौजदारी मैंने की है, जो कहना हो मुझसे कहिए।
प्रभु सेवक ने विस्मित होकर पूछा–तुम्हारा क्या नाम है?
नायकराम को कुछ तो राजा महेन्द्रकुमार के आश्वासन, कुछ विजया की तरंग और कुछ अपनी शक्ति के ज्ञान गंगा ने उच्छृंखल बना दिया था। लाठी सीधी करता हुआ बोला–लट्ठमार पांडे !
इस जवाब में हेकड़ी की जगह हास्य का आधिक्य था। प्रभु सेवक का बनावटी क्रोध हवा हो गया। हंसकर बोला–तब तो यहां ठहरने में कुशल नहीं है, कहीं बिल खोदना चाहिए।
नायकराम अक्खड़ आदमी था। प्रभु सेवक के मनोभाव न समझ सका। भ्रम हुआ–यह मेरी हंसी उड़ा रहे हैं, मानों कह रहे हैं कि तुम्हारी बकवास से क्या होता है, हम जमीन लेंगे और जरूर लेंगे। तिनककर बोला–आप हंसते क्या हैं, क्या समझ रखा है कि अंधे की जमीन सहज ही में मिल जाएगी? इस धोखे में न रहिएगा।
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