सदाबहार >> रंगभूमि (उपन्यास) रंगभूमि (उपन्यास)प्रेमचन्द
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नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन में उपस्थित मद्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है
नायकराम–भैरों, तुमने अवसर पड़ने पर भी कभी साथ नहीं छोड़ा, इतना तो मानना ही पड़ेगा।
भैरों–पंडाजी, तुम्हारा हुक्म हो, तो आग में कूद पड़ूं।
इतने में सूरदास भी आ पहुंचा। सोचता आता था–आज कहां खाना बनाऊंगा, इसकी क्या चिंता है; बस, नीम के पेड़ के नीचे बाटियां लगाऊंगा। गरमी के तो दिन हैं, कौन पानी बरस रहा है। ज्यों ही बजरंगी के द्वार पर पहुंचा कि जमुनी ने आज का सारा वृतांत कह सुनाया। होश उड़ गए। उपले ईंधन की सुधि न रही। सीधे नायकराम के यहां पहुंचा। बजरंगी ने कहा–आओ सूरे, बड़ी देर लगाई, क्या अभी चले आते हो? आज तो यहां बड़ा गोलमाल हो गया।
सूरदास–हां, जमुनी ने मुझसे कहा। मैं तो सुनते ही ठक रह गया।
बजरंगी–होनहार थी, और क्या। है तो लौंडा, पर हिम्मत का पक्का है। जब तक हम लोग हां-हां करें, तब तक फिटन से कूद ही तो पड़ा और लगा हाथ–पर-हाथ चलाने।
सूरदास–तुमलोगों ने पकड़ भी न लिया?
बजरंगी–सुनते तो हो, जब तक दौंड़े, तब तक तो उसने हाथ चला ही दिया।
सूरदास–बड़े आदमी गाली सुनकर आपे से बाहर हो जाते हैं।
जगधर–जब बीच बाजार में बेभाव की पड़ेंगी, तब रोएंगे। अभी तो फूले न समाते होंगे।
बजरंगी–जब चौके में निकले, तो गाड़ी रोककर जूतों से मारें।
सूरदास–अरे, अब जो हो गया, सो हो गया, उसकी आबरू बिगाड़ने से क्या मिलेगा?
नायकराम–तो क्या मैं यों ही छोड़ दूंगा। एक-एक बेंत के बदले अगर सौ-सौ जूते न लगाऊं तो मेरा नाम नायकराम नहीं। चोट मेरे बदन पर नहीं, मेरे कलेजे पर लगी है। बड़ों-बड़ों का सिर नीचा कर चुका हूं, इन्हें मिटाते क्या देर लगती है ! (चुटकी बजाकर) इस तरह उड़ा दूंगा !
सूरदास–बैर बढ़ाने से कुछ फायदा न होगा। तुम्हारा तो कुछ न बिगड़ेगा, लेकिन मुहल्ले के सब आदमी बंध जाएंगे।
नायकराम–कैसी पागलों की-सी बातें करते हो। मैं कोई धुनिया-चमार हूं कि इतनी बेइज्जती कराके चुप हो जाऊं? तुम लोग सूरदास को कायल क्यों नहीं करते जी? क्या चुप होके बैठे रहूं? बोलो बजरंगी, तुम लोग भी डर रहे हो कि वह किरस्तान सारे मुहल्ले को पीसकर पी जाएगा?
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