सदाबहार >> रंगभूमि (उपन्यास) रंगभूमि (उपन्यास)प्रेमचन्द
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नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन में उपस्थित मद्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है
बजरंगी–साहब रुपएवाले होंगे, अपने घर के होंगे। हमारी जमीन क्या खाकर ले लेंगे? माथे गिर जाएंगे, माथे ! ठट्टा नहीं है।
अभी ये ही बातें हो रही थीं कि सैयद ताहिर अली आकर खड़े हो गए, और नायकराम से बोले–पंडाजी, मुझे आपसे कुछ कहना है, जरा इधर चले आइए।
बजरंगी–उसी जमीन के बारे में कुछ बातचीत करनी है न? वह जमीन न बिकेगी।
ताहिर–मैं तुमसे थोड़े ही पूछता हूं। तुम उस जमीन के मालिक-मुख्तार नहीं हो।
बजरंगी–कह तो दिया, वह जमीन न बिकेगी, मालिक-मुख्तार कोई हो।
ताहिर–आइए पंडाजी, आइए, इन्हें बकने दीजिए।
नायकराम–आपको जो कुछ कहना हो कहिए; ये सब लोग अपने ही हैं, किसी से परदा नहीं है। सुनेंगे, तो सब सुनेगें, और जो बात तय होगी, सबकी सलाह से होगी। कहिए, क्या कहते हैं?
ताहिर–उसी जमीन के बारे में बातचीत करनी थी।
नायकराम–तो उस जमीन का मालिक तो आपके सामने बैठा हुआ है। जो कुछ कहना है, उसी से क्यों नहीं कहते? मुझे बीच में दलाली नहीं खानी है। जब सूरदास ने साहब के सामने इनकार कर दिया, तो फिर कौन-सी बात बाकी रह गई?
बजरंगी–इन्होंने सोचा होगा कि पंडाजी को बीच में डालकर काम निकाल लेंगे। साहब से कह देना, यहां साहबी न चलेगी।
ताहिर–तुम अहीर हो न, तभी इतने गर्म हो रहे हो। अभी साहब को जानते नहीं हो, तभी बढ़-बढ़कर बातें कर रहे हो। जिस वक्त साहब जमीन लेने पर आ जाएंगे, ले ही लेंगे, तुम्हारे रोके न रुकेंगे। जानते हो, शहर के हाकिमों से उनका कितना रब्त-जब्त है? उनकी लड़की की मंगनी हाकिम-जिला से होनेवाली है। उनकी बात को कौन टाल सकता है? सीधे से, रजामंदी के साथ दे दोगे, तो अच्छे दाम पा जाओगे; शरारत करोगे, तो जमीन भी निकल जाएगी, कौड़ी भी हाथ न लगेगी। रेलों के मालिक क्या जमीन अपने साथ लाए थे? हमारी ही जमीन तो ली है? क्या उसी कायदे से यह जमीन नहीं निकल सकती?
बजरंगी–तुम्हें भी कुछ तय-कराई मिलनेवाली होगी, तभी इतनी खैरखाही कर रहे हो।
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