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रंगभूमि (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :1153
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8600
आईएसबीएन :978-1-61301-119

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नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन में उपस्थित मद्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है


जगधर-उनसे जो कुछ मिलनेवाला हो, वह हमीं से ले लीजिए, और उनसे कह दीजिए, जमीन न मिलेगी। आप लोग झांसेबाज हैं, ऐसा झांसा दीजिए कि साहब का अकिल गुम हो जाए।

ताहिर–खैरख्वाही रुपए के लालच से नहीं है। अपने मालिक की आंख बचाकर एक कौड़ी भी लेना हराम समझता हूं। खैरख्वाही इसलिए करता हूं कि उनका नमक खाता हूं।

जगधर–अच्छा साहब, भूल हुई, माफ कीजिए। मैंने तो संसार के चलन की बात कही थी।

ताहिर–तो सूरदास, मैं साहब से जाकर क्या कह दूं?

सूरदास–बस, यही कह दीजिए कि जमीन न बिकेगी।

ताहिर–मैं फिर कहता हूं, धोखा खाओगे। साहब जमीन लेकर ही छोड़ेंगे।

सूरदास-मेरे जीते-जी तो जमीन न मिलेगी। हां, मर जाऊं तो भले ही मिल जाए।

ताहिर अली चले गए, तो भैरों बोला–दुनिया अपना ही फायदा देखती है। अपना कल्याण हो, दूसरे जिएं या मरे। बजरंगी, तुम्हारी तो गाये चरती हैं, इसलिए तुम्हारी भलाई तो इसी में हैं कि जमीन बनी रहे। मेरी कौन गाय चरती है? कारखाना खुला, तो मेरी बिक्री चौगुनी हो जाएगी। यह बात तुम्हारे ध्यान में क्यों नहीं आई? तुम सबकी तरफ से वकालत करनेवाले कौन हो? सूरे की जमीन है, वह बेचे या रखे, तुम कौन होते हो, बीच में कूदनेवाले?

नायकराम–हां बजरंगी, जब तुमसे कोई वास्ता-सरोकार नहीं, तो तुम कौन होते हो बीच में कूदनेवाले? बोलो, भैरों को जवाब दो।

बजरंगी–वास्ता-सरोकार कैसे नहीं? दस गांवों और मुहल्लों के जानवर यहां चरने आते हैं। वे कहां जाएंगे? साहब के घर कि भैरों के? इन्हें तो अपनी दुकान की हाय-हाय पड़ी हुई है। किसी के घर सेंध नहीं मारते? जल्दी से धनवान हो जाओगे।

भैरों–सेंध मारों तुम; यहां दूध में पानी नहीं मिलाते।

दयागिरि–भैरों, तुम सचमुच बड़े झगड़ालू हो। जब तुम्हें प्रियवचन बोलना नहीं आता, तो चुप क्यों नहीं रहते? बहुत बातें करना बुद्धिमानी का लक्षण नहीं, मूर्खता का लक्षण है।

भैरों–ठाकुरजी के भोग के बहाने से रोज छाछ पा जाते हो न? बजरंगी की जय क्यों न मनाओगे !

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