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रंगभूमि (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :1153
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8600
आईएसबीएन :978-1-61301-119

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नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन में उपस्थित मद्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है


एक दिन जब घर से सब प्राणी गिरजाघर जाने लगे, तो सोफ़िया ने सिरदर्द का बहाना किया। अब तक वह शंकाओं के होते हुए भी रविवार को गिरजाघर चली जाया करती थी। प्रभु सेवक उसका मनोभाव ताड़ गए, बोले–सोफ़ी गिरजा जाने में तुम्हें क्या आपत्ति है? वहां जाकर आध घंटे चुपचाप बैठे रहना कोई ऐसा मुश्किल काम नहीं।

प्रभु सेवक बड़े शौक से गिरजा जाया करते थे, वहां उन्हें बनाव और दिखाव, पाखंड और ढकोसलों की दार्शनिक मीमांसा करने और व्यंग्योक्तियों के लिए सामग्री जमा करने का अवसर मिलता था। सोफ़िया के लिए आराधना विनोद की वस्तु नहीं, शांति और तृप्ति की वस्तु थी। बोली–तुम्हारे लिए आसान हो, मेरे लिए मुश्किल ही है।

प्रभु सेवक–क्यों अपनी जान बवाल में डालती हो? मामा का स्वभाव तो जानती हो।

सोफ़िया–मैं तुमसे परामर्श नहीं चाहती, अपने कामों की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेने को तैयार हूं !

मिसेज सेवक ने आकर पूछा–सोफ़ी, क्या सिर में दर्द इतना है कि गिरजे तक नहीं चल सकती?

सोफ़िया–जा क्यों नहीं सकती; पर जाना नहीं चाहती।

मिसेज सेवक–क्यों?

सोफ़िया–मेरी इच्छा। मैंने गिरजा जाने की प्रतिज्ञा नहीं की है।

मिसेज सेवक–क्या तू चाहती है कि हम कहीं मुंह दिखाने के लायक न रहें?

सोफ़िया–हरगिज नहीं, मैं सिर्फ इतना ही चाहती हूं कि आप मुझे चर्च जाने के लिए मजबूर न करें।

ईश्वर सेवक पहले ही अपने तामजान पर बैठकर चल दिए थे। जॉन सेवक ने आकर केवल इतना पूछा–क्या बहुत ज्यादा दर्द है? मैं उधर से कोई दवा लेता आऊंगा, जरा पढ़ना कम कर दो और रोज घूमने जाया करो।

यह कहकर वह प्रभु सेवक के साथ फ़िटन पर आ बैठे। लेकिन मिसेज सेवक इतनी आसानी से उसका गला छोड़ने वाली न थीं। बोलीं–तुझे ईसू के नाम से इतनी घृणा है?

सोफ़िया–मैं हृदय से उनकी श्रद्धा करती हूं।

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