सदाबहार >> रंगभूमि (उपन्यास) रंगभूमि (उपन्यास)प्रेमचन्द
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नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन में उपस्थित मद्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है
सोफ़िया–वह तो तुमसे मिलने को बहुत उत्सुक थीं। कब की आ गई होतीं, पर कदाचित् हमारे बीच में बिना बुलाए आना अनुचित समझतीं होंगी।
प्रभु सेवक–मामा, अभी सोफ़ी को यहां दो-चार दिन और आराम से पड़ी रहने दीजिए। अभी इसे उठने में कष्ट होगा। देखिए, कितनी दुर्बल हो गई है !
सोफ़िया–रानीजी भी यही कहती थीं कि अभी मैं तुम्हें जाने न दूंगी।
मिसेज सेवक–यह क्यों नहीं कहती कि तेरा ही जी यहां से जाने को नहीं चाहता। वहां तेरा इतना प्यार कौन करेगा !
सोफ़िया–नहीं मामा, आप मेरे साथ अन्याय कर रही हैं। मैं अब यहां एक दिन भी नहीं रहना चाहती। इन लोगों को मैं अब और कष्ट नहीं दूंगी। मगर एक बात मुझे मालूम हो जानी चाहिए। मुझ पर फिर तो अत्याचार न किया जाएगा? मेरी धार्मिक स्वतंत्रता में फिर तो कोई बाधा न डाली जाएगी?
प्रभु सेवक–सोफ़ी, तुम व्यर्थ इन बातों की क्यों चर्चा करती हो? तुम्हारे साथ कौन-सा अत्याचार किया जाता है? जरा-सी बात का बतंगड़ बनाती हो।
मिसेज सेवक–नहीं, तूने यह बात पूछ ली, बहुत अच्छा किया। मैं भी मुगालते में नहीं रखना चाहती। मेरे घर में प्रभु मसीह के द्रोहियों के लिए जगह नहीं है।
प्रभु सेवक–आप नाहक उससे उलझती हैं। समझ लीजिए, कोई पगली बक रही है।
मिसेज सेवक–क्या करूं, मैंने तुम्हारी तरह दर्शन नहीं पढ़ा। यथार्थ को स्वप्न नहीं समझ सकती। यह गुण तत्त्वज्ञानियों ही में हो सकता है। यह मत समझो कि मुझे अपनी संतान से प्रेम नहीं है। खुदा जानता है, मैंने तुम्हारी खातिर क्या-क्या कष्ट नहीं झेले। उस समय तुम्हारे पापा एक दफ्तर में क्लर्क थे। घर का सारा काम-काज मुझी को करना पड़ता था। बाजार जाती, खाना पकाती, झाड़ू लगाती; तुम दोनों ही बचपन में कमजोर थे, नित्य एक-न-एक रोग लगा ही रहता था। घर के कामों से जरा फुरसत मिलती तो डॉक्टर के पास जाती। बहुधा तुम्हें गोद में लिए-ही-लिए रातें कट जातीं। इतने आत्मसमर्पण से पाली हुई संतान को जब ईश्वर से विमुख होते देखती हूं, तो मैं दुःख और क्रोध से बावली हो जाती हूं। तुम्हें मैं सच्चा, ईमान का पक्का, मसीह का भक्त बनाना चाहती थी। इसके विरुद्ध जब तुम्हें ईसू से मुंह मोड़ते देखती हूं, उनके उपदेश, उनके जीवन और उनके अलौकिक कृत्यों पर शंका करते पाती हूं, तो मेरे हृदय के टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं, और यही इच्छा होती है कि इसकी सूरत न देखूं। मुझे अपना मसीह सारे सांसर से, यहां तक कि अपनी जान से भी प्यारा है।
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