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रंगभूमि (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :1153
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8600
आईएसबीएन :978-1-61301-119

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नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन में उपस्थित मद्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है


मिसेज सेवक इनकार न कर सकीं। रानीजी ने उनका हाथ पकड़ लिया, और अपने राजभवन की सैर कराने लगीं। आध घंटे तक मिसेज सेवक मानों इंद्र-लोक की सैर करती रहीं। भवन क्या था, आमोद, विलास, रसज्ञता और वैभव का क्रीड़ास्थल था। संगमरमर के फर्श पर बहुमूल्य कालीन बिछे हुए थे। चलते समय उनमें पैर धंस जाते थे। दीवारों पर मनोहर पच्चीकारी; कमरों की दीवारों में बड़े-बड़े आदम-कद आईने; गुलकारी इतनी सुंदर कि आंखें मुग्ध हो जाएं; शीशे की अमूल्य-अलभ्य वस्तुएं, प्राचीन चित्रकारों की विभूतियां; चीनी के विलक्षण गुलदान; जापान, चीन, यूनान और ईरान की कला-निपुणता के उत्तम नमूने; सोने के गमले, लखनऊ की बोलती हुई मूर्तियां इटली के बने हुए हाथी-दांत के पलंग; लकड़ी के नफीस ताक; दीवारगीरे; किश्तियां, आंखों को लुभानेवाली, पिंजड़ों में चहकती हुई भांति-भांति की चिड़ियां; आंगन में संगमरमर का हौज और उसके किनारे संगमरमर की अप्सराएं–मिसेज सेवक ने इन सारी वस्तुओं में से किसी की प्रंशसा नहीं की, कहीं भी विस्मय या आनंद का एक शब्द भी मुंह से न निकला। उन्हें आनंद के बदले ईर्ष्या हो रही थी। ईर्ष्या में गुणग्राहकता नहीं होती। वह सोच रही थीं–एक यह भाग्यवान हैं कि ईश्वर ने इन्हें भोग-विलास और आमोद-प्रमोद की इतनी सामग्रियां प्रदान कर रखी हैं। एक अभागिनी मैं हूं कि एक झोंपड़े में पड़ी हुई दिन काट रही हूं। सजावट और बनावट का जिक्र ही क्या, आवश्यक वस्तुएं भी काफी नहीं। इस पर तुर्रा यह कि हम प्रातः से संध्या तक छाती फाड़कर काम करती हैं, यहां कोई तिनका तक नहीं उठाता। लेकिन इसका क्या शोक? आसमान की बादशाहत में तो अमीरों का हिस्सा नहीं। वह तो हमारी मीरास होगी। अमीर लोग कुत्तों की भांति दुत्कारे जाएंगे, कोई झांकने तक न पाएगा।

इस विचार से उन्हें कुछ तसल्ली हुई। ईर्ष्या की व्यापकता ही साम्यवाद की सर्वप्रियता का कारण है। रानी साहिबा को आश्चर्य हो रहा था कि इन्हें मेरी कोई चीज पसंद न आई, किसी वस्तु का बखान न किया। मैंने एक-एक चित्र और एक-एक प्याले के लिए हजारों खर्च किए हैं। ऐसी चीजें यहां और किसके पास हैं। अब तो अलभ्य हैं, लाखों में भी न मिलेंगी। कुछ नहीं, बन रही हैं, या इतना गुण-ज्ञान ही नहीं है कि इनकी कद्र कर सकें।

इतने पर भी रानीजी को निराशा नहीं हुई। उन्हें अपने बाग दिखाने लगीं। भांति-भांति के फूल और पौधे दिखाए। माली बड़ा चतुर था। प्रत्येक पौधे का गुण और इतिहास बतलाता जाता था–कहां से आया, कब आया, किस तरह लगाया गया, कैसे उसकी रक्षा की जाती है; पर मिसेज सेवक का मुँह अब भी न खुला। यहां तक कि अंत में उसने एक ऐसी नन्हीं-सी जड़ी दिखाई, जो येरुसलम से लाई गई थी। कुंवर साहब उसे स्वयं बड़ी सावधानी से लाए थे, और उसमें एक-एक पत्ती निकलना उनके लिए एक-एक शुभ संवाद से कम न था। मिसेज सेवक ने तुरंत उस गमले को उठा लिया, उसे आंखों से लगाया और पत्तियों को चूमा। बोलीं–मेरा सौभाग्य है कि इस दुर्लभ वस्तु के दर्शन हुए।

रानी ने कहा–कुंवर साहब स्वयं इसका बड़ा आदर करते हैं। अगर यह आज सूख जाए, तो दो दिन तक उन्हें भोजन अच्छा न लगेगा।

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