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रंगभूमि (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :1153
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8600
आईएसबीएन :978-1-61301-119

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नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन में उपस्थित मद्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है


इतने में चाय तैयार हुई। मिसेज सेवक लंच पर बैठीं। रानीजी को चाय से रुचि न थी। विनय और इंदु के बारे में बातें करने लगीं। विनय के आचार-विचार सेवा-भक्ति और परोपकार-प्रेम की सराहना की, यहां तक कि मिसेज सेवक का जी उकता गया। इसके जवाब में वह अपनी संतानों का बखान न कर सकती थीं।

उधर मि. जॉन सेवक और कुंवर साहब दीवानखाने में बैठे लंच कर रहे थे। चाय और अंडों से कुंवर साहब को रुचि न थी। विनय भी इन दोनों वस्तुओं को त्याज्य समझते थे। जॉन सेवक उन मनुष्यों में थे, जिनका व्यक्तित्व शीघ्र ही दूसरों को आकर्षित कर लेता है। उनकी बातें इतनी विचारपूर्ण होती थीं कि दूसरे अपनी बातें भूलकर उन्हीं की सुनने लगते थे। और, यह बात न थी कि उनका भाषण शब्दाडंबर-मात्र होता हो। अनुभवशील और मानव-चरित्र के बड़े अच्छे ज्ञाता थे। ईश्वरदत्त प्रतिभा थी, जिसके बिना किसी सभा में सम्मान नहीं प्राप्त हो सकता। इस समय वह भारत की औद्योगिक और व्यावसायिक दुर्बलता पर अपने विचार प्रकट कर रहे थे। अवसर पाकर उन साधनों का भी उल्लेख करते जाते थे, जो इस कुदशा-निवारण के लिए उन्होंने सोच रखे थे। अंत में बोले–हमारी जाति का उद्धार, कला-कौशल और उद्योग की उन्नति में है। इस सिगरेट के कारखाने से कम-से-कम एक हजार आदमियों के जीवन की समस्या हल हो जाएगी और खेती के सिर से उनका बोझ टल जाएगा। जितनी जमीन एक आदमी अच्छी तरह जोत-बो सकता है, उसमें घर-भर का लगा रहना व्यर्थ है। मेरा कारखाना ऐसे बेकारों को अपनी रोटी कमाने का अवसर देगा।

कुंवर साहब–लेकिन जिन खेतों में इस वक्त नाज बोया जाता है, उन्हीं खेतों में तंबाकू बोई जाने लगेगी। फल यह होगा कि नाज और महंगा हो जाएगा।

जॉन सेवक–मेरी समझ में तंबाकू की खेती का असर जूट, सन, तेलहन और अफीम पर पड़ेगा। निर्यात जिस कुछ कम हो जाएगी। गल्ले पर इसका कोई असर नहीं पड़ सकता। फिर हम उस जीन को भी जोत में लाने का प्रयास करेंगे, जो अभी तक परती पड़ी हुई है।

कुंवर साहब–लेकिन तंबाकू कोई अच्छी चीज तो नहीं। इसकी गणना मादक वस्तुओं में है और स्वास्थ्य पर इसका बुरा असर पड़ता है।

जॉन सेवक–(हंसकर) ये सब डॉक्टरों की कोरी कल्पनाएं हैं, जिन पर गंभीर विचार करना हास्यास्पद है। डॉक्टरों के आदेशानुसार हम जीवन व्यतीत करना चाहे, तो जीवन का अंत हो जाए। दूध में सिल के कीड़े रहते हैं, घी में चरबी की मात्रा अधिक है, चाय और कहवा उत्तेजक हैं, यहां तक कि सांस लेने से भी कीटाणु शरीर में प्रवेश कर जाते है। उनके सिद्धांतों के अनुसार समस्त संसार कीटों से भरा हुआ है, जो हमारे प्राण लेने पर तुले हुए हैं। व्यवसायी लोग इन गोरख-धंधों में नहीं पड़ते; उनका लक्ष्य केवल वर्तमान परिस्थितियों पर रहता है। हम देखे हैं कि इस देश में विदेश से करोड़ों रुपए के सिगरेट और सिगार आते हैं। हमारा कर्त्तव्य है कि इस धन-प्रवाह को विदेश जाने से रोकें। इसके बगैर हमारा आर्थिक जीवन कभी पनप नहीं सकता।

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