सदाबहार >> रूठी रानी (उपन्यास) रूठी रानी (उपन्यास)प्रेमचन्द
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रूठी रानी’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचंद ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है
इधर चंचल, शोख, भारीली कुछ इस अंदाज में इठलाती, लचकती, बलखाती राव जी के पास पहुंची कि वह जवानी और शराब की मस्ती में उसी को रानी समझकर उसके साथ चल दिए। भारीली ने भी उन्हें वहां से हटा ले जाना ही ठीक समझा। मगर वह भी चुलबुली तबीयत की लड़की थी, राव की नजर अपने ऊपर बेढब पड़ते देखकर ललचा गई। यह न कहा बन्दी रानी नहीं, बांदी ही है। बल्कि राव जी को धोखे में डालकर अपने घर ले गई। रानी उमादे ने जब यह सुना तो सन्नाटे में आ गई। और उसकी गाइनें गाने लगीं–
पहलां तोछी कलाली हमारा मारो जी रे ले भालिनी
अब छे आलीलारी घर नार
(भरा ला ऐ सुघड़ कलाली, अंगूरी शराब ला। पहले तो कलाली उसकी प्रेमिका थी, पर अब तो उस आलीजाह की घरवाली हो गई है।)
परदेसियां रा साजना पती जे मिलियां
(जैसलमेर देश में जह बिजलियां चमकती हैं वह ऊपर की ऊपर चली जाती हैं। ऐसे ही परदेशी साजन से मिलने का यकीन नहीं होता)
दासी दीनी बिच गई पिऊ रे पास
(भेड़ ली तो थी उनके लिए पर अब वह बंधी हुई कपास चरती है। लौंडी दहेज में दी गई थी, अब वह पिया से हिल-मिल गई है।)
उमादे का विलास भवन राव जी की इस उदासीनता में ठंडा पड़ गया। उसकी चढ़ती हुई जवानी, नहीं मालूम दिल में क्या-क्या उमंगें जोश मार रही थीं। क्या-क्या हौसले पैदा हो रहे थे, उसने पति के स्वागत में क्या-क्या तैयारियां न की थीं, सुराही और प्याला, नाच और गाने, बनाव-चुनाव में कोई कसर न छोड़ी थी मगर अफसोस सब सामान धरा रह गया। वह झल्लाकर उठी, गानेवालियों से कहा, तुम लोग जाओ, और सुराही व जाम उठाकर पटक दिए। वह थाल जो आरती के लिए बहुत रचकर सजाया था और जो सुनहले दीपों से जगमगा रहा था, उसने औंधा कर दिया और गम गुस्से की हालत में पलंग पर मुंह लपेटकर सो रही। उस वक्त जो ख्यालात उसके दिल में पैदा होते थे उनका अंदाजा लगाना मुश्किल है। अगर राव मालदेव यों न बहक जाते तो अब तक ही कमरा स्वर्ग बना होता, अंगूरी शराब के दौर चलते होते, सुरीले रागों से कमरा गूंजता होता—और प्रेमी और प्रेमिका एक-दूसरे के दर्शन के मजे लूटते होते। मगर यह बातें अब कहां।
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