सदाबहार >> रूठी रानी (उपन्यास) रूठी रानी (उपन्यास)प्रेमचन्द
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रूठी रानी’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचंद ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है
मौके महल के मुताबिक गीत सुनकर उमादे मुस्कराई और फिर लजाकर आंखें नीचे कर लीं। इस वक्त उसके यौवन के नशे में मस्त दिल की जो कैफियत हो रही थी, बयान नहीं की जा सकती। खवासें, सहेलियां दम-दम पर दौड़ाई जाती थीं कि देख राजा जी आ तो नहीं रहे हैं। प्रेमिका इंतजार से बेचैन हो रही थी। गानेवालियों ने गीत का दूसरा बन्द गाया–
देरावर गढ़ गजनी और नगर जैसलमेर
महलां पधारो, महाराज हो।
(मथुरा, पुंगल, प्रयाग, मारवाड़, लाहौर, गजनी देरावर, भटनेर और जैसलमेर, यह सब देश भाटियों के हैं। ऐ महाराज, महलों में तशरीफ ले चलिए)
अबकी सहेलियों ने उमादे पर से कुछ अशर्फियां न्योछावर करके गादने को दीं और उन्होंने खुश होकर यह दूसरा गीत शुरू किया–
गोरी छायी है रूप प्यारे बेगां बेगां आओ।
रंग मानो हमारे राव
(ऐ मेरे राव, जवानी के मजे लूटिए। रात तारों से, सेज फूलों से और गोरी मस्ती के जोश से भरी हुई है, प्यारे जल्द आकर सुख लूटो।)
इतने में एक खवास ने कहा कि वहां राव जी नशे में चूर बैठे हैं और सुराही और प्याले के गीत अलापे जा रहे हैं। वह सुनकर गानेवालियों ने यहां भी गीत शुरू कर दिया, बस उसके पद बदल दिए–
सोने री भट्टी सरूं रूपे ही घर नार
हाथ पिलायो धन खड़ी पीयो राजकुमार
(ऐ सुघड़ साकी, अंगूरी शराब भर ला। सोने की भट्टी और चांदी का बीका बनाऊं। रानी अपने हाथ में प्याला लिए कहती हैं, राजकुमार, तुम पियो।)
ताको रस साजन पिए लाज कहां ते होय
(आम पत्तियों के साथ फलता है और महुआ अपने पत्ते खोकर। उसका रस साजन पीता है फिर उसे लाज क्योंकर आए? जिस वक्त महुए के फूल लगते हैं सारे पत्ते झड़ जाते हैं। पत में श्लेष है। पत का मतलब पत्ता भी है और लाज भी। मतलब यह है कि शराब बे शर्म महुए से बनाती है तो शराब पीने वाला क्योंकर लाज निभा सकता है।)
महलों में पुकार पड़ी है और ऐ बेटे राजकुमार, तुमको आने की फुर्सत नहीं।
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