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रूठी रानी (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :278
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8610
आईएसबीएन :978-1-61301-181

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रूठी रानी’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचंद ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है

रानी की हठ

रानी उमादे अपनी जिद पर कायम रही। राव जी से न बोलती है, न उन्हें अपने पास बैठने देती है। राव जी आते हैं तो वह उनका बड़े अदब से स्वागत करती है मगर फिर अलग जा बैठती है। उसके माशूकाना अंदाज और शक्लसूरत से राव जी को बहुत मोह लिया है। वह बहुत चाहते हैं कि और कुछ न हो तो व जरा हंसकर बोल ही दे। मगर रानी उनको बिल्कुल खातिर में नहीं लाती। इसके साथ ही साथ वह भारीली से भी कुछ खिंची-खिंची रहती है। भारीली अपने मामूली काम किए जाती है और आंख बचाकर राव जी से हंस-बोल लेती है।

राव जी समझते थे कि भारीली ही ने मेरी जान बचायी। वह उनसे कहती कि आप ही की बदौलत यह नाकदरी हो रही है। अब मेरी लाज आपके हाथ है। अगर आपने मन मैला किया तो मैं कहीं की न रहूंगी। राघोजी ज्योतिषी ने भी कहा कि अगर भारीली मुझसे भेद न बताती तो जो सेवा मैंने आपकी की है वह हरगिज न कर सकता था।

राव जी इतना तो जानते थे कि रावल जी की बुरी नीयत की खबर मुझे ज्योतिषी जी ने दी और ज्योतिषी जी को भरीली से इसका पता लगा मगर वह यह न जानते थे कि भारीली से कहने वाला कौन था। उनका हाल तो जब मालूम होता कि रानी उमादे अपने मुंह से कुछ कहती। मगर वह तो भारीली, राव जी और ज्योतिषी, सबों से ऐसी खिन्न हो रही थी कि जबान ही न खोलती थी। उसका धर्म यह कहता कि तेरा यों रूठे रहना शोभा नहीं देता। मगर उसका दिल नहीं मानता था। वह जब तबीयत को दबाकर कुछ बातचीत करने की नीयत करती तो कोई जबान पकड़ लेता, बेचारी अपने दिल से लाचार थी।

भारीली उमादे की इस खामोशी से डरती रहती है कि कहीं मुझ पर बरस न पड़े। एक दिन दिल कड़ा करके वह उसके पैरों पर गिर पड़ी और गिड़गिड़ा कर कहने लगी कि बाई जी, आप जो चाहें सोचें, आपको अख्तियार है। मगर मैंने तो उस वक्त भी आपकी भलाई ही की थी, जब आपने मुझे राव जी को लेने के लिए भेजा था क्योंकि महल के बाहर निकलते ही मुझे संदेह हुआ कि कोई आदमी जनाने भेष में राव जी पर ताक लगाए हुए है। इसलिए मैंने उन्हें आपके महल में लाना खतरे से खाली न समझा और अपने घर लिवा ले गयी। राव जी नशे में मतवाले हो रहे थे। रात-भर सोते रहे और मैं कटार लिए खड़ी रही। जब उनकी नींद खुली और वह अपने होश में आए तो मैं आपकी खिदमत में हाजिर हो गई। अगर इसमें मेरी कुछ खता हो तो माफ करें।

उमादे ने यह सब बातें सुन तो लीं पर मुंह से कुछ न बोली। भारीली खिसियानी होकर चली गयी।

बारात जोधपुर पहुंच गई। दीवान और मंत्री बड़ी धूमधाम से अगवानी को आए। कोसों दूर तक फौज और तमाशाइयों का तांता लगा था। किले में पहुंचते ही रानीवास की तरफ से बाजों के साथ फूल-पत्तों से सजा हुआ एक कलसा आया। राव जी उसमें अशर्फियां डालकर अन्दर चले गए। वहां उनकी मां रानी पद्माजी ने बेटे और बहू पर से अशर्फियां निछावर कीं। बेटे और बहू ने उनके पैर चूमे। अन्दर जाकर देवी-देवताओं की पूजा की गयी और उमादे एक सजे हुए महल में उतारी गयी।

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