सदाबहार >> रूठी रानी (उपन्यास) रूठी रानी (उपन्यास)प्रेमचन्द
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रूठी रानी’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचंद ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है
राव जी के और भी कई रानियां थीं और उनके बाल-बच्चे भी थे। पटरानी आमेर के राजा भीम की बेटी लाछनदेई थी। राव जी का बेटा कुमार राम इसी रानी से पैदा हुआ था। झाले की रानी सरूपदेई सब रानियों में सुन्दर थी। उसने राव जी का मिजाज बिलकुल अपने काबू में कर रखा था। मगर जब से उसको मोतबर खबर मिली थी कि उमादे मुझसे सुन्दरता में कहीं बढ़-चढ़कर है तब से उसकी छाती पर सांप लोट रहा था। डरती थी कि कहीं राजा साहब मुझे नजरों से गिराकर उसी के वश में न हो जाएं। लेकिन जब आज उसने सुना कि वह पहली ही रात को रूठ गयीं और यहां आकर भी खिंचाव है तब उसकी जान में जान आयी।
मां से रुखसत होकर राव जी झाली रानी सरूपदेई के महल में तशरीफ ले गए। उसने बड़ी खुशी से दौड़कर राव जी के पैर छुए और अपना मोतियों का अनमोल हार तोड़कर उन पर मोती निछावर किए। वह उमादे के खिंचे होने और झल्लेपन से बहुत खिन्न और दुःखी हो रहे थे। रानी सरूपदेई की इस गरमा-गरमी और जोश-तपाक से बहुत खुश हुए और उसे शादी का सब हाल सुनाने लगे। रानी ने सुनकर अर्ज की– ‘‘अगर आप कहें तो एक दिन मैं भी भट्टानी जी से मिल आऊँ।’’
राव जी– ‘‘भट्टानी क्या हैं, एक भाटा हैं।’’
सरूपदेई– (हंसकर) ‘‘वाह, आपने बड़ी इज्जत की। भाटा क्यों होने लगीं, भट्टानी हैं।’’
राव जी– ‘‘हां भट्टानी तो हैं मगर पत्थर की बनी हैं। घमण्ड की सच्ची मूरत।’’
सरूपदेई– ‘‘ईश्वर ने रूप दिया है तो घमण्ड क्यों न करें। क्या आपको यह बात भी न भायी।’’
राव जी– ‘‘आखिर घमण्ड की भी कोई हद होती है।’’
सरूपदेई– ‘‘भला जो एक बड़े घर की बेटी हो, बड़े राव की रानी हो नवेली दुल्हन हो, नौजवान हो, सुन्दर हो, उसके घमण्ड की क्या हद हो सकती है। मुझ जैसे गरीब घर की क्या घमण्ड करेगी।’’
राव जी– ‘‘यह सब तुमने ठीक कहा। मगर उसका स्वभाव सचमुच बहुत कठोर और रूखा है। तुम उससे मिलकर खुश न होगी।’’
सरूपदेई– ‘‘अच्छा, तो आप तशरीफ ले चलिए, हम सब आपके साथ-साथ चलेंगे।’’
राव जी– ‘हंसकर) ‘‘ठीक है, तुम्हारे साथ चलाकर अपनी बेइज्जती कराऊं।’’
सरूपदेई– (गर्म होकर) ‘‘वह क्या उसका बाप भी आपकी बेइज्जती नहीं कर सकता।’’
राव जी– ‘‘और चाहे तो पति की बहुत कुछ तौहीन कर सकती है। अगर तुम्हारे सामने वह मुझसे मुखातिब न हुई तो बतलाओ मेरी बेइज्जती हुई या नहीं?’’
सरूपदेई– ‘‘जब आप इतनी-सी बात में अपनी बेइज्जती समझेंगे तो उसका घमण्ड क्यों कर निभेगा और कौन निभाएगा?’’
राव जी– ‘‘हां, यही देखना है।’’
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