सदाबहार >> रूठी रानी (उपन्यास) रूठी रानी (उपन्यास)प्रेमचन्द
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रूठी रानी’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचंद ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है
इस बहाने वह मन्दौर चला आया और यहां अपने दोस्तों और सहयोगियों और अपना भेद जानने वालों को जमा करके बोला कि राव जी बूढ़े हो गए हैं, उनकी बदइन्तजामी से मुल्क में झगड़े मचे हुए हैं। अपने दोस्त रोज-ब-रोज दुश्मनों से मिलते जाते हैं। लिहाजा आज यहां से चलते ही उन्हें पकड़ लो और कैद कर दो ताकि मुल्क में अमन-चैन हो जाए। यहां यह सलाह होती ही रही उधर राव जी को भी इसकी खबर लग गई। उन्होंने झटपट कछवाही रानी लाछलदेई की ड्योढ़ी पर पालकी भिजवा दी और कहलाया कि अभी किले से नीचे आ जाओ। रानी ने पूछा, मेरी खता? जवाब मिला कि तेरा बेटा तुझसे बतला देगा। रानी को उसी दम किला छोड़ना पड़ा। शाम को राम भी घमण्ड के नशे में झूमता हुआ आया और किले में जाने लगा तो किलेदार ने कहा, ‘‘आपको अन्दर जाने का हुक्म नहीं है।’’ राम ने कहा, ‘‘जाकर राव जी से कहो कि मैंने कौन-सी खता की है।’’
उन्होंने जवाब दिया– ‘‘तुम कपूत हो और किले में रहने के काबिल नहीं। बेहतर है कि तुम गोंडौज चले जाओ। वहीं तुम्हारे लिए सब इन्तजाम कर दिया जाएगा।’’
मजबूरन राम अपनी माँ के साथ गोंडौज चला गया। झाली रानियों ने जब यह अपनी मर्जी के मुताबिक करा लिया तो अब रूठी रानी के पीछे पड़ी कि किसी तरह यह सिल छाती पर से सरक जाती तो फिर किसी बात का खटका न रहता। हमारे हाथ में राव जी हैं ही, जो चाहते करते। चुनांचे राव जी के कान भरने लगीं कि रूठी रानी ही के इशारे से राम ऐसा आज्ञाद्रोही और फसादी हो गया है। रानियों के इशारे से और लोगों ने भी रूठी रानी की शिकायत की। यहां तक कि राव जी ने उसे भी गोंडौज भेज दिया। अब की बार पति की आज्ञा उसने बड़े शौक से मानी क्योंकि कछवाही रानी और कुमार राम से उसको बहुत स्नेह हो गया था। इसके अलावा वह राव जी को इतनी परेशानियों में फंसा देखकर उन्हें तंग करना ठीक न समझती थी। जिस दिन उसके गोंडौज जाने की खबर रनिवास में पहुंची उसकी सौतों के घर घी के चिराग जले।
कुमार राम की शादी राणा उदयसिंह की लड़की से हुई थी। गोंडौज में अपना निबाह न देखकर वह उदयपुर चला गया। राणा ने उसका बड़ा स्वागत सत्कार किया और मौजा कलेवा उसके रहने के लिए दे दिया जो मारवाड़ से बहुत नजदीक है। थोड़े दिन में राम अपनी मां और उमादे दोनों को उसी जगह ले गया। इस तरह झाली रानियों की आंख का कांटा निकल गया। राव जी भी बाहरी और भीतरी झंझटों से फुरसत पाकर देश जीतने में लग गए और बहुत-से खोए हुए इलाके फिर से जीत लिए बल्कि कई नए इलाके भी फतेह किए।
मगर इन सफलताओं का सिलसिला बहुत जल्द टूट गया। अकबर के तख्त पर आने और जोर पकड़ने से राव जी को अपनी ही पगड़ी सम्हालनी मुश्किल हो गई। धीरे-धीरे कितने ही इलाके हाथ से निकल गए। जवान बादशाह की जोशीली चढ़ाइयों का बूढ़ा राव क्या सामना करता। उसकी जिन्दगी के दिन भी पूरे हो गए थे। आखिर संवत् १६१९ के कार्तिक महीने में राव मालदेव ने बड़ी कामयाबी से राज करने के बाद स्वर्ग की राह ली।
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