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संग्राम (नाटक)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :283
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8620
आईएसबीएन :978-1-61301-124

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मुंशी प्रेमचन्द्र द्वारा आज की सामाजिक कुरीतियों पर एक करारी चोट

आठवां दृश्य

[समय-संख्या, जेठ का महीना। स्थान-मधुवन, कई आदमी फत्तू द्वार पर खड़े हैं।]

मंगरू– फत्तू, तुमने बहुत चक्कर लगाया, सारा संसार छान डाला।

सलोनी– बेटा, तुम न होते तो हलधर का पता लगना मुसकिल था।

हरदास– पता लगना तो मुसकिल नहीं था, हां जरा देर में लगता।

मंगरू– कहां-कहां गए थे?

फत्तू– पहले तो कानपुर गया। वहां के सब पुतलीघरों को देखा। कहीं पता न लगा, तब लोगों ने कहा बम्बई चले जाओ। वहां चला गया। मुदा उतने बड़े शहर में कहां-कहां ढूंढ़ता। चार-पांच दिन पुतलीघरों में देखने गया, पर हियाब छूट गया। सहर काहे को है पूरा मुलुक है। जान पड़ता है संसार-भर के आदमी वहीं आ कर जमा हो गये हैं। तभी तो यहां गांव में आदमी नहीं मिलते। सब मानों कुछ नहीं तो एक हजार मील तो होंगे। रात-दिन उनकी चिमनियों से धुआं निकला करता है। ऐसा जान पड़ता है, राक्षसों की फौज मुंह से आग निकालती आकाश से लड़ने जा रही है। आखिर निराश हो कर वहां से चला आया। गाड़ी में एक बाबू जी से बातचीत होने लगी। मैंने सब राम-कहानी उन्हें सुनायी। बड़े दयावान आदमी थे। कहां, किसी अकबार में छपा दो कि जो उनका पता बता देगा उसे ५० रु इनाम दिया जायेगा। मेरे मन में बात जम गयी। बाबू जी से ही मसौदा बनवा लिया और यहां गाड़ी से उतरते ही सीधे अकबार के दफ्तर में गया। छपाई का दाम देकर चला आया। पांचवें दिन वह चपरासी यहां आया जो मुझसे खड़ा बातें कर रहा था। उसने रत्ती-रत्ती सब पता बता दिया। हलधर न कलकत्ता गया है न बम्बई, यहीं हिरासत में है। वही कहावत हुई, गोद में लड़का सहर में ढिंढोरा।

मंगरू– हिरासत में क्यों है।

फत्तू– महाजन की मेहरबानी और क्या? माघ-पूस कंचनसिंह के यहां से कुछ रुपये लाया था। बस नादिहंदी के मामले में गिरफ्तार करा दिया।

हरदास– उनके रुपये तो यहां और कई आदमियों पर आते हैं, किसी को गिरफ्तार नहीं कराया। हलधर पर ही क्यों इतनी टेढ़ी निगाह की?

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