लोगों की राय

कहानी संग्रह >> सप्त सरोज (कहानी संग्रह)

सप्त सरोज (कहानी संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :140
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8624
आईएसबीएन :978-1-61301-181

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

430 पाठक हैं

मुंशी प्रेमचन्द की सात प्रसिद्ध कहानियाँ


गोदावरी ने जोर देकर कहा– तुमको न हो, मुझे तो है। अगर अपनी खातिर से नहीं, तो तुम्हें मेरी खातिर से यह काम करना ही पड़ेगा।

पण्डितजी सरल स्वभाव के मनुष्य थे। हामी तो उन्होंने न भरी, पर बार-बार कहने से वे कुछ-कुछ राजी अवश्य हो गए। उस तरफ से इसी की देर थी। पण्डितजी को कुछ भी परिश्रम न करना पड़ा। गोदावरी की कार्य-कुशलता ने सब काम उनके लिए सुलभ कर दिया। उसने उस काम के लिए अपने पास से केवल रुपये ही नहीं निकाले, किन्तु अपने गहने और कपड़े भी अर्पण कर दिए! लोक-निन्दा का भय इस मार्ग में सबसे बड़ा काँटा था। देवदत्त मन में विचार करने लगे कि मैं मौर सजाकर चलूँगा, तब लोग मुझे क्या कहेंगे! मेरे दफ्तर के मित्र मेरी हँसी उड़ाएँगे और मुस्कुराते हुए कटाक्षों से मेरी ओर देखेंगे। उनके वे कटाक्ष छुरी से भी ज्यादा तेज होंगे। उस समय मैं क्या करूँगा?

गोदावरी ने अपने गाँव में जाकर इस कार्य को आरम्भ कर दिया और इसे निर्विघ्न समाप्त भी कर डाला। नई बहू घर में आ गई। उस समय गोदावरी ऐसी प्रसन्न मालूम हुई, मानों वह बेटे का ब्याह कर लाई हो। वह खूब गाती-बजाती रही। उसे क्या मालूम था कि शीघ्र ही उसे इस गाने के बदले रोना पड़ेगा।

कई मास बीत गए। गोदावरी अपनी सौत पर इस तरह शासन करती थी, मानो वह उसकी सास हो, तथापि वह यह बात कभी न भूलती थी कि मैं वास्तव में उसकी सास नहीं हूँ। उधर गोमती को भी अपनी स्थिति का पूरा ख्याल रहता था। इसी कारण सास के शासन की तरह कठोर न रहने पर भी गोदावरी का शासन अप्रिय प्रतीत होता था। उसे अपनी छोटी-मोटी जरूरतों के लिए भी गोदावरी से कहते संकोच होता था।

कुछ दिनों बाद गोदावरी के स्वभाव में एक विशेष परिवर्तन दिखाई देने लगा। वह पण्डितजी को घर में आते-जाते तीव्र दृष्टि से देखने लगी। उसकी स्वाभाविक गम्भीरता अब मानो लोप-सी हो गई, जरा सी बात भी पेट में नहीं पचती। जब पण्डितजी दफ्तर से आते, तब गोदावरी उनके पास घण्टों बैठे गोमती का वृत्तांत सुनाया करती। इस वृत्तांत-कथन में बहुत-सी ऐसी छोटी-मोटी बातें भी होती थीं कि जब कथा समाप्त होती, तब पण्डितजी के हृदय से बोझ-सा उतर जाता। गोदावरी क्यों इतनी मृदुभाषिणी हो गई थी, इसका कारण समझना मुश्किल था। शायद अब वह गोमती से डरती थी। उसके सौन्दर्य से, उसके जीवन से, उसके लज्जायुक्त नेत्रों से शायद वह अपने को पराभूत समझती। बाँध को तोड़कर वह पानी की धारा को मिट्टी के ढेलों से रोकना चाहती थी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book