कहानी संग्रह >> सप्त सरोज (कहानी संग्रह) सप्त सरोज (कहानी संग्रह)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द की सात प्रसिद्ध कहानियाँ
सभा पति ने सजल नेत्र होकर कम्पित स्वर में कहा– सरदार साहब के वियोग का दुख हमारे दिल में सदा खटकता रहेगा। यह घाव कभी न भरेगा।
मगर ‘‘फेयरवेल डिनर” में यह बात सिद्ध हो गई कि स्वादिष्ट पदार्थों के सामने वियोग का दुःख दुस्सह नहीं।
यात्रा के समान तैयार थे। सरदार साहब जलसे से आये, तो रामा ने उन्हें बहुत उदास और मलिन मुख देखा। और उसने बार-बार कहा था कि बड़े इंजीनियर के खानसामा को इनाम दो, हेडक्लर्क की दावत करो, मगर सरदार साहब ने उनकी बात न मानी थी। इसलिए जब उसने सुना कि उनका दरजा घटा और बदली भी हुई, तब उसने बड़ी निर्दयता से अपने व्यंग्यबाण चलाए। मगर इस वक्त उन्हें उदास देखकर उससे न रहा गया। बोली– क्यों इतने उदास हो? सरदार साहब ने उत्तर दिया– क्या करूँ, हँसूँ? रामा ने गम्भीर स्वर से कहा– हँसना ही चाहिए। रोए तो वह, जिसने कौड़ियों पर अपनी आत्मा भ्रष्ट की हो– जिसने रुपयों पर अपना धर्म बेचा हो। यह बुराई का दण्ड नहीं है। यह भलाई और सज्जनता का दण्ड है। इसे सानन्द झेलना चाहिए।
यह कहकर उसने पति की ओर देखा, तो नेत्रों में सच्चा अनुराग भरा हुआ दिखाई दिया। सरदार साहब ने भी उसकी ओर स्नेहपूर्ण दृष्टि से देखा। उनकी हृदयेश्वरी का मुखारविंद सच्चे आमोद से विकसित था। उसे गले लगाकर वे बोले– रामा! मुझे तुम्हारी ही, सहानुभूति की जरूरत थी। अब इस दण्ड को सहर्ष सहूँगा।
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