कहानी संग्रह >> सप्त सरोज (कहानी संग्रह) सप्त सरोज (कहानी संग्रह)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द की सात प्रसिद्ध कहानियाँ
तब उस कुविचार को परास्त करने के लिए, जिसने क्षण मात्र के लिए उन पर विजय पा ली थी, वे उस सुनसान कमरे में जोर से ठठाकर हँसे। चाहे यह हँसी उन बिलों ने और कमरों की दीवारों ने सुनी हो, चाहे न सुनी हो, मगर उनकी आत्मा ने अवश्य सुनी। उस आत्मा को एक कठिन परीक्षा से पार पाने पर परम आनन्द हुआ।
सरदार साहब ने उन बिलों को उठाकर मेज के नीचे डाल दिया। फिर उन्हें पैरों से कुचला। तब इस विजय पर मुस्कराते हुए अन्दर गये।
बड़े इंजीनियर साहब नियत समय पर शाहजहाँपुर आये। उनके साथ सरदार साहब का दुर्भाग्य भी आया। जिले के सारे काम अधूरे पड़े हुए थे। उनके खानसामा ने कहा– हुजूर! काम कैसे पूरा हो? सरदार साहब ठेकेदारों को बहुत तंग करते हैं। हेडक्लर्क ने दफ्तर के हिसाब को भ्रम और भूलों से भरा हुआ पाया। उन्हें सरदार की तरफ से न कोई दावत दी गई, न कोई भेंट। तो क्या वे सरदार साहब के कोई नातेदार थे, जो गलतियाँ न निकालते?
जिले के ठेकेददारों ने एक बहुमूल्य डाली सजायी और उसे बड़े इंजीनियर साहब की सेवा में लेकर हाजिर हुए। बोले– हुजूर,चाहे गुलामों को गोली मार दे, मगर सरदार साहब का अन्याय अब नहीं सहा जाता। कहने को तो कमीशन नहीं लेते, मगर सच पूछिए तो जान ले लेते हैं।
चीफ इंजीनियर साहब ने मुआइने की किताब में लिखा– सरदार शिवसिंह बहुत ईमानदार आदमी हैं। उनका चरित्र उज्जवल है, मगर वे इतने बड़े जिले के कार्य का भार नहीं सँभाल सकते।
परिणाम यह हुआ कि वे एक छोटे जिले में भेज दिए गए और उनका दरजा भी घटा दिया गया।
सरदार साहब के मित्रों और स्नेहियों ने बड़े समारोह से एक जलसा किया। उनमें उनकी धर्मनिष्ठा और स्वतन्त्रता की प्रशंसा की।
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