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सप्त सरोज (कहानी संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :140
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8624
आईएसबीएन :978-1-61301-181

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शर्माजी साँस खींचकर बोले– साँड़ से अधिक भयंकर विषैली हवा थी। ओह! यह लोग ऐसी गन्दगी में कैसे रहते हैं?

बाबूलाल– रहते क्या हैं, किसी तरह जीवन के दिन पूरे करते हैं।

शर्माजी– पर यह स्थान तो साफ है?

बाबूलाल– जी हाँ, इस तरफ गाँव के किनारे तक साफ जगह मिलेगी।

शर्माजी– तो उधर इतना मैला क्यों है?

बाबूलाल– गुस्ताखी माफ हो तो कहूँ।

शर्माजी हँसकर बोले– प्राणदान माँगा होता! सच बताओ क्या बात है? एक तरफ ऐसी स्वच्छता और दूसरी तरफ यह गन्दगी!

बाबूलाल– यह मेरा हिस्सा है और वह आपका हिस्सा है। मैं अपने हिस्से की देख-रेख करता हूँ, पर आपका हिस्सा नौकरों की कृपा के अधीन है।

शर्माजी– अच्छा, यह बात है। आखिर आप क्या करते हैं?

बाबूलाल– और कुछ नहीं केवल ताकीज करता रहता हूँ। अधिक मैलापन देखता हूँ, स्वयं साफ करता हूँ। मैंने सफाई का एक इनाम नियत कर दिया है, जो प्रति-मास घर के मालिक को मिलता है। आइए, बैठिए।

शर्माजी के लिए एक कुर्सी रख दी गई। वे उस पर बैठ गए और बोले-क्या आप आज ही आये हैं?

बाबूलाल– जी हाँ, कल तातील है। आप जानते ही हैं कि तातील के दिनों में भी मैं यहीं रहता हूँ।

शर्माजी– शहर का क्या रंग-ढंग है?

बाबूलाल– वही हाल, बल्कि और भी खराब। ‘सोशल सर्विस लीग’ वाले भी गायब हो गए। गरीबों के घरों में मुर्दे पड़े हुए हैं। बाजार बन्द हो गए। खाने को अनाज नहीं मिलता।

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