कहानी संग्रह >> सप्त सरोज (कहानी संग्रह) सप्त सरोज (कहानी संग्रह)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द की सात प्रसिद्ध कहानियाँ
शर्माजी ने इस बकवास को बड़े ध्यान से सुना। वह रसिक मनुष्य थे। इसकी मार्मिकता पर मुग्ध हो गए। सहृदयता और कठोरता के ऐसे विचित्र मिश्रण से उन्हें मनुष्यों के मनोभावों का एक कौतूहलजनक परिचय प्राप्त हुआ। ऐसी वक्तृता का उत्तर देने की कोशिश करना व्यर्थ था। बोले– क्या कोई तहकीकात है या महज गश्त?
दारोगाजी बोले– जी नहीं, महज गश्त। आजकल किसानों के फसल के दिन हैं। यही जमाना हमारी फसल का भी है! शेर को भी माँद में बैठे-बैठे शिकार नहीं मिलता। जंगल में घूमता है। हम भी शिकार की तलाश में हैं। किसी पर खुफिया-फरोशी का इलजाम लगाया किसी को चोरी का माल खरीदने के लिए पकड़ा किसी को हमलहराम का झगड़ा उठाकर फाँसा। अगर हमारे नसीब से डाका पड़ गया, तो हमारी पाँचों अँगुलियाँ घी में समझिए। डाकू तो नोच खसोटकर भागते हैं, असली डाका हमारा पड़ता है। आसपास के गाँवों में झाड़ू, फेर देते हैं। खुदा से शबोरोज दुआ करते हैं कि या परवरदिगार! कहीं से रिजक भेज। झूठे-सच्चे डाके की खबर आवे। अगर देखा की तकदीर पर शाकिर रहने से काम नहीं चलता तो तदबीर से काम लेते हैं। जरा से इशारे की जरूरत है, डाका पड़ते क्या देर लगती है। आप मेरी साफगोई पर हैरान होते होंगे। अगर मैं अपने सारे हथकड़े बयान करूँ, तो आप यकीन न करेंगे और लुत्फ यह कि मेरा शुमार जिले के निहायत होशियार, कारगुजार, दयानतदार सब–इन्स्पेक्टरों में है। फर्जी डाके डलवाता हूँ। फर्जी मुल्जिम पकड़ता हूँ, मगर सजाएँ असली दिलवाता हूँ। शहादतें ऐसी गढ़ता हूँ कि कैसा ही बैरिस्टर का चचा क्यों न हो, उनमें गिरफ्त नहीं कर सकता।
इतने में शहर से शर्माजी की डाक आ गई। वे उठ खड़े हुए और बोले– दारोगाजी, आपकी बातें बड़ी मजेदार होती हैं। अब इजाजत दीजिए। डाक आ गई है। जरा उसे देखना है।
चाँदनी रात थी। शर्माजी खुली छत पर लेटे हुए एक समाचार पत्र पढ़ने में मग्न थे। अकस्मात कुछ शोर-गुल सुनकर नीचे की तरफ झाँका तो क्या देखते हैं कि गाँव के चारों तरफ से कांस्टेबलों के साथ किसान चले आ रहे हैं। बहुत से आदमी खलिहान की तरफ से बड़बड़ाते आते थे। बीच-बीच में सिपाहियों की डाँट-फटकार की आवाजें भी कानों में आती थीं। यह सब आदमी बँगले के सामने सहन में बैठते जाते थे। कहीं-कहीं स्त्रियों का आर्त्तनाद भी सुनाई देता था। शर्माजी हैरान थे कि मामला क्या है? इतने में दारोगाजी की भयंकर गरज सुनाई पड़ी– हम एक न मानेंगे, सब लोगों को थाने चलना होगा।
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