सामाजिक कहानियाँ >> सप्त सुमन (कहानी-संग्रह) सप्त सुमन (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
|
5 पाठकों को प्रिय 100 पाठक हैं |
मुंशी प्रेमचन्द की सात प्रसिद्ध सामाजिक कहानियाँ
दूसरे भक्त महाशय बोले– अब बेचारे ठाकुर जी को चमारों के हाथ का भोजन करना पड़ेगा। अब परलय होने में कुछ कसर नहीं है।
ठंड पड़ रही थी, सुखिया खड़ी काँप रही थी और यहाँ धर्म के ठेकेदार लोग समय की गति पर आलोचनाएँ कर रहे थे। बच्चा मारे ठंड के उसकी छाती में घुसा जाता था, किन्तु सुखिया वहाँ से हटने का नाम न लेती थी। ऐसा मालूम होता था कि उसके दोनों पाँव भूमि में गड़े हैं। रह– रहकर उसके हृदय में ऐसा उद्गार उठता था
कि जाकर ठाकुर जी के चरणों पर गिर पड़े। ठाकुर जी क्या इन्हीं के हैं, हम गरीबों का उनसे कोई नाता नहीं है, ये लोग होते है कौन रोकने वाले पर यह भय होता था कि इन लोगों ने कहीं सचमुच थाली– वाली फेंक दी तो क्या करूँगी? दिल में ऐंठ कर जाती थी। सहसा उसे एक बात सूझी वह वहाँ से कुछ दूर जाकर एक वृक्ष के नीचे अँधेरे में छिप कर इन भक्तजनों के जाने की राह देखने लगी।
आरती की स्तुति के पश्चात भक्त जन बड़ी देर तक श्रीमद्भागवत का पाठ करते रहे। उधर पुजारी जी ने चूल्हा जलाया और खाना पकाने लगे। चूल्हे के सामने बैठे हुए ‘हूँ– हूँ’ करते जाते थे और बीच– बीच में टिप्पणियाँ भी करते जाते थे। दस बजे रात तक कथा वार्ता होती रही और सुखिया वृक्ष के नीचे ध्यानावस्था में खड़ी रही।
सारे भक्त लोगों ने एक– एक करके घर की राह ली। पुजारी जी अकेले रह गये। अब सुखिया आकर मन्दिर के बरामदे के सामने खड़ी हो गयी, जहाँ पुजारी जी आसन जमाये बटलोई का क्षुधावर्द्घव मधुर संगीत सुनने में मग्न थे। पुजारी जी ने आहट पाकर गरदन उठायी तो सुखिया को खड़ी देखकर बोले क्यों रे, तू अभी तक खड़ी है!
सुखिया ने थाली ज़मीन पर रख दी और एक हाथ फैलाकर भिक्षा प्रार्थना करती हुई बोली महाराज जी, मैं अभागिनी हूँ। यही बालक मेरे जीवन का अलम है, मुझ पर दया करो। तीन दिन से इसने सिर नहीं उठाया। तुम्हें बड़ा जस होगा, महाराज जी!
यह कहते– कहते सुखिया रोने लगी। पुजारी जी दयालु तो थे, पर चमारिन को ठाकुर जी के समीप जाने देने का अश्रुतपूर्व घोर पातक वह कैसे कर सकते थे? न जाने ठाकुर जी इसका क्या दंड दें। आखिर उनके भी बाल– बच्चे थे। कहीं ठाकुर जी कुपित होकर गाँव का सर्वनाश कर दें तो? बोले– घर जाकर भगवान् का नाम ले, तो बालक अच्छा हो जाएगा। मैं यह तुलसी दल देता हूँ, बच्चे को खिला दे, चरणामृत उसकी आँखों में लगा दे। भगवान् चाहेंगे तो सब अच्छा ही होगा।
सुखिया– ठाकुर जी के चरणों पर गिरने न दोगे महाराज जी? बड़ी दुखिया हूँ, उधार काढ़कर पूजा की सामग्री जुटायी है। मैंने कल सपना देखा था, महाराज जी कि ठाकुर जी की पूजा कर, तेरा बालक अच्छा हो जायेगा। तभी आई हूँ। मेरे पास एक रुपया है। वह मुझसे ले लो पर मुझे एक छन भर ठाकुर जी के चरनों पर गिर लेने दो।
|