सामाजिक कहानियाँ >> सप्त सुमन (कहानी-संग्रह) सप्त सुमन (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द की सात प्रसिद्ध सामाजिक कहानियाँ
एक लम्बी साँस खींचकर वह उठ खड़ी हुई। उसकी आँखों में आँसू न आये। उसका मुँख क्रोध की ज्वाला में तमतमा उठा, आँखों के अंगारे बरसने लगे। दोनों मुट्ठियाँ बँध गयी। दाँत पीसकर बोली– पापियों, मेरे बच्चे के प्राण लेकर क्यों दूर खडे़ हो? मुझे भी क्यों नहीं उसी के साथ मार डालते? मेरे छू लेने से ठाकुर जी को छूत लग गयी? पारस को छूकर लोहा सोना हो जाता है, पारस लोहा नहीं हो सकता। मेरे छूने से ठाकुर जी अपवित्र हो जाएँगे।
मुझे बनाया, तो छूत नहीं लगी? लो अब कभी ठाकुर जी को छूने नहीं आऊँगी। ताले में बन्द रखो पहरे बैठा दो। हाय, तुम्हें दया छू भी नहीं गयी। तुम इतने कठोर हो! बाल– बच्चे वाले होकर भी तुम्हें एक अभागिन माता पर दया न आयी! तिस पर धरम के ठेकेदार बनते हो! तुम सब के सब हत्यारे हो। डरो मत मैं थाना– पुलिस नहीं जाऊँगी। मेरा न्याय भगवान् करेंगे, अब उन्हीं के दरबार में फरियाद करूँगी। किसी ने चू न की, कोई मिनमिनाया तक नहीं। पाषाण मूर्तियों की भाँति सब सिर झुकाए खड़े रहे।
इतनी देर में सारा गाँव जमा हो गया था। सुखिया ने एक बार फिर बालक के मुँह की ओर देखा। मुँह से निकला– हाय मेरे लाल! फिर वह मूर्क्षित होकर गिर पड़ी। प्राण निकले गये। बच्चे के प्राण दे दिये।
माता, तू धन्य है। तुझ– जैसी श्रद्धा, तुझ जैसा विश्वास देवताओं को भी दुर्लभ है!
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