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सामाजिक कहानियाँ >> सप्त सुमन (कहानी-संग्रह)

सप्त सुमन (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :164
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8626
आईएसबीएन :978-1-61301-184

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मुंशी प्रेमचन्द की सात प्रसिद्ध सामाजिक कहानियाँ


सुजान के हाथों से धीरे– धीरे अधिकार छीने जाने लगे। किस खेत में क्या बोना है किसको क्या देना है, किससे क्या लेना है, किस भाव क्या चीज बिकी, ऐसी महत्वपूर्ण बातों में भी भगतजी की सलाह न ली जाती। भगत के पास कोई जाने ही न पाता। दोनों लड़के या स्वयं बुलाकी दूर ही से मामला कर लिया करती। गाँव भर में सुजान का मान– सम्मान बढ़ता था, अपने घर में घटता था। लड़के अब उसका सत्कार अब बहुत करते। उसे हाथ से चारपाई उठाते देख लपककर खुद उठा लाते, उसे चिलम न भरने देते, यहाँ तक कि उसकी धोती छाँटने के लिए भी आग्रह करते थे; मगर अधिकार उसके हाथ में न था। वह अब घर का स्वामी नहीं, मंदिर का देवता था।

एक दिन बुलाकी ओखली में दाल छाँट रही थी। एक भिखमंगा द्वार पर आकर चिल्लाने लगा। बुलाकी ने सोचा, दाल छाँट लूँ, तो उसे कुछ दे दूँ। इतने में बड़ा लड़का आकर बोला– अम्माँ, एक महात्मा द्वार पर खड़े है गला फाड़ रहे हैं। कुछ दे दो, नहीं उनका रोआँ दुखी हो जाएगा।

बुलाकी ने उपेक्षा– भाव से कहा– भगत के पाँव में क्या मेंहदीं लगी है, क्यों कुछ ले जाकर नहीं दे देते! क्या मेरे चार हाथ हैं? किस– किसका रोआँ सुखी करूँ, दिन भर तो ताँता लगा रहता है!

भोला– चौपट करने पर लगे हुए हैं और क्या? अभी महूँगू बेंग देने आया था। हिसाब से सात मन हुए। तौला तो पौने सात मन ही निकले। मैंने कहा– दस सेर और ला, तो आप बैठे– बैठे कहते हैं, अब इतनी दूर कहाँ लेने जाएगा? भर– पाई लिख दो, नहीं उसका रोआँ दुखी होगा। मैंने भरपाई नहीं लिखी। दस सेर बाकी लिख दी।

बुलाकी बहुत अच्छा किया तुमने, बकने दिया करो, दस– पाँच दफे मुँह की खाएँगे, तो आप ही बोलना छोड़ देंगे।

भोला– दिन– भर एक– न– एक खुचड़ निकालते रहते है। सौ दफे कह दिया कि तुम घर– गृहस्थी के मामले में न बोला करो; पर इनसे बिना बोले रहा ही नहीं जाता।

बुलाकी– मैं जानती कि इनका यह हाल होगा, तो गुरु-मंत्र न लेने देती।

भोला– भगत क्या हुए कि दीन-दुनियाँ दोनों से गए। सारा दिन पूजा पाठ में ही उड़ जाता है। अभी ऐसे बूढे़ नहीं हो गए कि कोई काम ही न कर सके।

बुलाकी ने आपत्ति की– भोला, यह तो तुम्हारा कुन्याय है। फावड़ा-कुदाल अब उनसे नहीं हो सकता, लेकिन कुछ न कुछ करते ही रहते हैं। बैलों को सानी पानी देते हैं, गाय दुहाते हैं, और भी जो कुछ हो सकता है करते हैं।

भिझुक अभी तक खड़ा चिल्ला रहा था। सुजान ने जब घर में से किसी को कुछ लाते न देखा, तो उठकर अंदर गया और कठोर स्वर में बोला– तुम लोगों को कुछ सुनाई न देता कि द्वार पर कौन घंटे भर से खड़ा भीख माँग रहा है? अपना काम तो दिन भर करता ही है, एक छन भगवान् का काम भी तो किया करो।

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