सामाजिक कहानियाँ >> सप्त सुमन (कहानी-संग्रह) सप्त सुमन (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द की सात प्रसिद्ध सामाजिक कहानियाँ
भोला ने मड़ैया में लेटे– लेटे पिता को हल लिये जाते देखा; पर उठ न सका। उसकी हिम्मत छूट गई। उसने कभी इतना परिश्रम न किया था। उसे बनी– बनायी गिरस्थी मिल गई थी। उसे ज्यों– त्यों चला रहा था। इन दामों वह घर का स्वामी बनने का इच्छुक न था। आदमी को बीस धंधे होते हैं। हँसने– बोलने के लिए, गाने– बजाने के लिए उसे कुछ समय चाहिए। पड़ोस के गाँव में दंगल हो रहा है। जवान आदमी कैसे अपने आप को वहाँ जाने से रोकेगा? किसी गाँव में बरात आयी है, नाच– गाना हो रहा है। जवान आदमी क्यों उसके आनंद से वंचित रह सकता है? वृद्धजनों के लिए ये बाधाएँ नहीं उन्हें न नाच– गाने से मतलब, न खेल– तमाशे से गरज, केवल अपने काम से काम है।
बुलाकी ने कहा– भोला तुम्हारे दादा हल लेकर गये।
भोला– जाने दो अम्माँ, मुझसे तो यह नहीं हो सकता।
सुजान भगत के इस नवीन उत्साह पर गाँव में टीकाएँ हुई। निकल गई सारी भगती। बना हुआ था। माया में फँसा हुआ है। आदमी काहे को, भूत है!
मगर भगतजी के द्वार पर अब फिर साधु– संत आसन जमाए देखे जाते हैं। उनका आदर– सम्मान होता है, अब की उसकी खेती ने सोना उगल दिया है। बखारी में अनाज रखने की जगह नहीं मिलती। जिस खेत में पाँच मन मुश्किल से होता था। उसी खेत में अब दस मन की उपज हुई है।
चैत का महीना था। खलियानों में सतयुग का राज था। जगह– जगह अनाज के ढेर लगे हुए थे। यही समय है जब कृषकों को भी थोड़ी देर के लिए अपना जीवन सफल मालूम होता है, जब गर्व से उनका हृदय उछलने लगता है। सुजान भगत टोकरों में अनाज भर– भर देते थे और दोनों लड़के टोकरे लेकर घर में अनाज रख आते थे। कितने ही भाट और भिछुक भगत जी को घेरे हुए थे। उनमें वह भिक्षुक भी था, जो आज से आठ महीने पहले भगत के द्वार से निराश होकर लौट गया था।
सहसा भगत ने उस भिक्षुक से पूछा– क्यों बाबा, आज कहाँ– कहाँ चक्कर लगा आये?
भिक्षुक– अभी तो कहीं नहीं गया भगतजी, पहले तुम्हारे ही पास आया हूँ।
भगत– अच्छा तुम्हारे सामने यह ढेर है, इसमें से जितना अपने हाथ से उठाकर ले जा सकते हो ले जाओ।
भिक्षुक ने क्षुब्ध नेत्रों से ढेर को देखकर कहा– जितना अपने हाथ से उठाकर दे दोगे, उतना ही लूँगा।
भगत– नहीं, तुमसे जितना उठ सके, उठा लो।
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