लोगों की राय

सामाजिक कहानियाँ >> सप्त सुमन (कहानी-संग्रह)

सप्त सुमन (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :164
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8626
आईएसबीएन :978-1-61301-184

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

100 पाठक हैं

मुंशी प्रेमचन्द की सात प्रसिद्ध सामाजिक कहानियाँ


भिक्षुक के पास एक चादर थी। उसने कोई दस सेर अनाज उसमें भरा और उठाने लगा। संकोच के मारे और अधिक भरने का उसे साहस न हुआ।

भगत उसके मन का भाव समझकर आश्वासन देते हुए बोले– बस! इतना तो एक बच्चा उठा ले जाएगा।

भिक्षुक ने भोला की ओर संदिग्ध नेत्रों से देखकर कहा– मेरे लिए इतना बहुत है।

भगत– नहीं, तुम सकुचाते हो। अभी और भरो।

भिक्षुक ने एक पंसेरी अनाज और भरा और फिर भोला की ओर संशय दृष्टि से देखने लगा।

भगत– उसकी ओर क्या देखते हो बाबाजी, मैं जो कहता हूँ, वह करो। तुमसे जितना उठाया जा सके, उठा लो।

भिक्षुक डर रहा था कि कहीं उसने अनाज भर लिया और भोला ने गठरी न उठाने दी, तो कितनी भद्द होगी। और भिक्षुकों को हँसने का अवसर मिल जाएगा। सब यही कहेंगे कि भिक्षुक कितना लोभी है। उसे और अनाज भरने की हिम्मत न पड़ी।

तब सुजान भगत ने चादर लेकर अनाज भरा और गठरी बाँधकर बोले– इसे उठा ले जाओ।

भिक्षुक– बाबा, इतना तो मुझसे उठ न सकेगा।

भगत– अरे! इतना भी न उठ सकेगा! बहुत होगा, तो मन भर। भला जोर तो लगाओ, देखूँ तो उठा सकते हो या नहीं।

भिक्षुक ने गठरी को आजमाया। भारी थी, जगह से हिली भी नहीं– बोला भगत जी यह मुझसे न उठेगी।

भगत– अच्छा बताओ किस गाँव में रहते हो?

भिक्षुक– बड़ी दूर है भगतजी, अमोला का नाम तो सुना होगा?

भगत– अच्छा आगे– आगे चलो, मैं पहुँचा दूँगा।

यह कहकर भगत ने जोर लगाकर गठरी उठाई और सिर पर रखकर भिक्षुक के पीछे हो लिए। देखने वाले भगत का यह पौरुष देखकर चकित हो गए। उन्हें क्या मालूम था कि भगत पर इस समय कौन– सा नशा था। आठ महीने के निरंतर अविरल परिश्रम का आज उन्हें फल मिला था। आज उन्होंने अपना खोया हुआ अधिकार फिर पाया था। वही तलवार, जो केले को भी नहीं काट सकती, सग्न पर चढ़कर लोहे को काट देती है। मानव– जीवन में लाग बड़े महत्व की वस्तु है। जिसमें लाग है, वह बूढ़ा भी तो जवान है। जिसमें लाग नहीं, गैरत नहीं, वह भी तो मृतक है। सुजान भगत में लाग थी और उसी ने उन्हें अमानुषीय बल प्रदान कर दिया था। चलते समय उन्होंने भोला की ओर समर्थ नेत्रों से देखा और बोले– ये भाट और भिक्षु खड़े हैं, कोई खाली हाथ न लौटने पाए।

भोला सिर झुकाए खड़ा था। उसे कुछ बोलने का हौसला न हुआ। वृद्ध पिता ने उसे परास्त कर दिया था।

0 0 0

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book