सामाजिक कहानियाँ >> सप्त सुमन (कहानी-संग्रह) सप्त सुमन (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द की सात प्रसिद्ध सामाजिक कहानियाँ
नानी ने कहा– बेटी, देखो लड़के का दिल छोटा हो गया। वह क्या जाने, क्या कहना चाहिए। अम्माँ कह दिया, तो तुम्हें कौन– सी चोट आ गई।
देवप्रिया ने कहा मुझे अम्माँ न कहे।
सौत का पुत्र विमाता की आँखों में क्यों इतना खटकता है, इसका निर्णय आज तक किसी मनोभाव के पंडित ने नहीं किया। हम किस गिनती में हैं? देवप्रिया जब तक गर्भिणी न हुई, वह सत्यपप्रकाश से कभी– कभी बातें करती, कहनियाँ सुनाती; किंतु गर्भिणी होते ही उसका व्यवहार कठोर हो गया। प्रसव– काल ज्यों– ज्यों निकट आता था। उसकी कठोरता बढ़ती ही जाती थी। जिस दिन उसकी गोद में एक चाँद से बच्चे का आगमन हुआ, सत्यप्रकाश खूब उछला– कूदा और सौर– गृह में दौड़ा हुआ बच्चे को देखने गया। बच्चा देवप्रिया की गोद में सो रहा था। सत्यप्रकाश ने बड़ी उत्सुकता से बच्चे को विमाता की गोद से उठाना चाहा कि सहसा देवप्रिया ने सरोष स्वर में कहा– खबरदार, इसे मत छूना नहीं तो कान पकड़कर उखाड़ लूँगी।
बालक उलटे पाँव लौट आया और कोठे की छत पर जाकर खूब रोया। कितना सुंदर बच्चा है! मैं उसे गोद में लेकर बैठता, तो कैसा मजा आता! मैं उसे गिराता थोड़े ही, फिर इन्होंने मुझे झिड़क क्यों दिया! भोला बालक क्या जानता था कि इस झिड़की का कारण माता की सावधानी नहीं, कुछ और है।
शिशु का नाम ज्ञानप्रकाश रखा गया था। एक दिन वह सो रहा था। देवप्रिया स्नानागार में थी। सत्यप्रकाश चुपके से आया और बच्चे का ओढ़ना हटा कर उसे अनुरागमय नेत्रों से देखने लगा। उसका जी चाहा कि उसे गोद में लेकर प्यार करूँ; पर डर के मारे उसने उसे उठाया नहीं, केवल कपोलों को चूमने लगा। इतने में देवप्रिया निकल आई। सत्यप्रकाश को बच्चे को चूमते देख कर आग हो गई। दूर ही से डाँटा– हट जा वहाँ से।
सत्यप्रकाश दीन नेत्रों से माता को देखता हुआ बाहर निकल आया संध्या– समय उसके पिता ने पूछा– तुम लल्ला को क्यों रुलाया करते हो?
सत्यप्रकाश– मैं तो उसे कभी नहीं रुलाता। अम्माँ खेलाने नहीं देतीं।
देवप्रकाश– झूठ बोलते हो, आज तुमने बच्चे को चुटकी काटी।
सत्यप्रकाश– जी नहीं मैं तो उसकी पुच्चियाँ ले रहा था।
देवप्रकाश– झूठ बोलता है!
देवप्रकाश को क्रोध आ गया। लड़के को दो– तीन तमाचे लगाए। पहली बार यह ताड़ना मिली और निरपराध! इसने इसके जीवन की काया– पलट कर दी।
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