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उपन्यास >> सेवासदन (उपन्यास)

सेवासदन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :535
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8632
आईएसबीएन :978-1-61301-185

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यह उपन्यास घनघोर दानवता के बीच कहीं मानवता का अनुसंधान करता है

२४

यह बात बिल्कुल तो असत्य नहीं है कि ईश्वर सबको किसी-न-किसी हीले से अन्न-वस्त्र देता है। पंडित उमानाथ बिना किसी हीले ही के संसार का सुख-भोग करते थे। उनकी आकाशी वृत्ति थी। उनके भैंस और गाएं न थीं, लेकिन घर में घी-दूध की नदी बहती थी; वह खेती-बारी न करते थे, लेकिन घर में अनाज की खत्तियां भरी रहती थीं। गांव में कहीं मछली मरे, कहीं बकरा कटे, कहीं आम टूटे, कहीं भोज हो, उमानाथ का हिस्सा बिना मांगे आप-ही-आप पहुंच जाता। अमोला बड़ा गांव था। ढाई-तीन हजार जनसंख्या थी। समस्त गांव में उनकी सम्मति के बिना कोई काम न होता था। स्त्रियों को यदि गहने बनवाने होते तो वह उमानाथ से कहतीं। लड़के-लड़कियों के विवाह उमानाथ की मार्फत तय होते। रेहननामें, बैनामें, दस्तावेज उमानाथ ही के परामर्श से लिखे जाते। मुआमिले-मुकद्दमें उन्हीं के द्वारा दायर होते और मजा यह था कि उनका यह दबाव और सम्मान उनकी सज्जनता के कारण नहीं था। गांववालों के साथ उनका व्यवहार शुष्क और रूखा होता था। वह बेलाग बात करते थे, लल्लो-चप्पो करना नहीं जानते थे, लेकिन उनके कटु वाक्यों को लोग दूध के समान पीते थे। मालूम नहीं, उनके स्वभाव में क्या जादू था। कोई कहता था, यह उनका इकबाल है, कोई कहता था उन्हें महावीर का इष्ट है। लेकिन हमारे विचार में यह उनके मानव-स्वभाव के ज्ञान का फल था। जानते थे कि कहां झुकना और कहां तनना चाहिए। गांवोंवालों से तनने में अपना काम सिद्ध होता था, अधिकारियों से झुकने में। थाने और तहसील के अमले, चपरासी से लेकर तहसीलदार तक सभी उन पर कृपादृष्टि रखते थे। तहसीलदार साहब के लिए वह वर्षफल बनाते, डिप्टी साहब को भावी उन्नति की सूचना देते। कानूनगो और कुर्कअमीन उनके द्वार पर बिना बुलाए मेहमान बने रहते। किसी को यंत्र देते, किसी को भगवद्गीता सुनाते और जिन लोगों की श्रद्धा इन बातों पर न थी, उन्हें मीठे आचार और नवरत्न की चटनी खिलाकर प्रसन्न रखते। थानेदार साहब उन्हें अपना दाहिना हाथ समझते थे। जहां ऐसे उनकी दाल न गलती वहां पंडितजी की बदौलत पांचों उंगलियां घी में हो जातीं। भला, ऐसे पुरुष की गांव वाले क्यों न पूजा करते?

उमानाथ को अपनी बहन गंगाजली से प्रेम था, लेकिन गंगाजली को मैके जाने के थोड़े ही दिनों पीछे ज्ञात हुआ कि भाई का प्रेम भावज की अवज्ञा के सामने नहीं ठहर सकता। उमानाथ बहन को अपने घर लाने पर मन में बहुत पछताते। वे अपनी स्त्री को प्रसन्न रखने के लिए ऊपरी मन से उसकी हां में हां मिला दिया करते। गंगाजली को साफ कपड़े पहनने का क्या अधिकार है? शान्ता का पालन पहले चाहे कितने ही लाड़-प्यार से हुआ हो, अब उसे उमानाथ की लड़कियों से बराबरी करने का क्या अधिकार है? उमानाथ स्त्री की इन द्वेषपूर्ण बातों को सुनते और उनका अनुमोदन करते। गंगाजली को जब क्रोध आता, तो वह उसे अपने भाई ही पर उतारती। वह समझती थी कि वे अपनी स्त्री को बढ़ावा देकर मेरी दुर्गति करा रहे हैं। ये अगर उसे डांट देते तो मजाल थी कि वह यों मेरे पीछे पड़ जाती? उमानाथ को जब अवसर मिलता, तो वह गंगाजली को एकांत में समझा दिया करते। किंतु एक तो जाह्नवी उन्हें ऐसे अवसर मिलने ही न देती, दूसरे गंगाजली को भी उनकी सहानुभूति पर विश्वास न आता।

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