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सेवासदन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :535
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8632
आईएसबीएन :978-1-61301-185

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यह उपन्यास घनघोर दानवता के बीच कहीं मानवता का अनुसंधान करता है


सुमन– उसकी तो सूरत देखने को जी नहीं चाहता। अब तुमसे क्या छिपाऊं, अभी परसों वकील साहब के यहां तुम्हारा मुजरा हुआ था। उनकी स्त्री मुझसे प्रेम रखती है। उन्होंने मुझे मुजरा देखने को बुलाया और बारह-एक बजे तक मुझे आने न दिया। जब तुम्हारा गाना खत्म हो चुका तो मैं घर आई। बस, इतनी-सी बात पर वह इतने बिगड़े कि जो मुंह में आया, बकते रहे। यहां तक कि वकील साहब से भी पाप लगा दिया। कहने लगे, चली जा, अब सूरत न दिखाना। बहन, मैं ईश्वर को बीच देकर कहती हूं, मैंने उन्हें मनाने का बड़ा यत्न किया। रोई, पर उन्होंने घर से निकाल ही दिया। अपने घर में कोई नहीं रखता, तो क्या जबरदस्ती है। वकील साहब के घर गई कि दस-पांच दिन रहूंगी, फिर जैसा होगा देखा जाएगा, पर इस निर्दयी ने वकील साहब को बदनाम कर डाला। उन्होंने मुझे कहला भेजा कि यहां से चली जाओ। बहन, और सब दुःख था, पर यह संतोष तो था कि नारायण इज्जत से निबाहे जाते हैं; पर कलंक की कालिख मुंह में लग गई, अब चाहे सिर पर जो कुछ पड़े, मगर उस घर में न जाऊंगी।

यह कहते-कहते सुमन की आंखें भर आईं। भोली ने दिलासा देकर कहा– अच्छा, पहले हाथ-मुंह तो धो डालो, कुछ नाश्ता कर लो, फिर सलाह होगी। मालूम होता है कि तुम्हें रात-भर नींद नहीं आई।

सुमन– यहां पानी मिल जाएगा?

भोली ने मुस्कराकर कहा– सब इंतजाम हो जाएगा। मेरा कहार हिंदू है। यहां कितने ही हिंदू आया करते हैं। उनके लिए एक हिन्दू कहार रख लिया है।

भोली की बूढ़ी मामी सुमन को गुसलखाने में ले गई। वहां उसने साबुन से स्नान किया। तब मामी ने उसके बाल गूंथे। एक नई रेशमी साड़ी पहनने के लिए लाई। सुमन जब ऊपर आई और भोली ने उसे देखा, तो मुस्कराकर बोली– जरा जाकर आईने में मुंह देख लो।

सुमन शीशे के सामने गई। उसे मालूम हुआ कि सौंदर्य की मूर्ति सामने खड़ी है। सुमन अपने को इतना सुंदर न समझती थी। लज्जायुक्त अभिमान से मुखकमल खिल उठा और आंखों में नशा छा गया। वह एक कोच पर लेट गई।

भोली के अपनी मामी से कहा– क्यों जहूरन, अब तो सेठजी आ जाएंगे पंजे में?

जहूरन बोली– तलुवे सहलाएंगे– तलुवे।

थोड़ी देर में कहार मिठाइयां लाया। सुमन ने जलपान किया। पान खाया और फिर आईने के सामने खड़ी हो गई। उसने अपने मन में कहा, यह सुख छोड़कर उस अंधेरी कोठरी में क्यों रहूं?

भोली ने पूछा– गजाधर शायद मुझे तुम्हारे बारे में कुछ पूछे, तो क्या कह दूंगी?

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