लोगों की राय

सामाजिक कहानियाँ >> सोज़े वतन (कहानी-संग्रह)

सोज़े वतन (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :96
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8640
आईएसबीएन :978-1-61301-187

Like this Hindi book 2 पाठकों को प्रिय

304 पाठक हैं

सोज़े वतन यानी देश का दर्द…


मगर टेढ़ी चाल की तक़दीर से उसका यह प्रताप, यह प्रतिष्ठा न देखी गयी। कुछ थोड़े से आज़माये हुए अफसर जिनके तेग़ों की चमक मसऊद के तेग़ के सामने मन्द पड़ गयी थी, उससे खार खाने लगे और उसे मिटा देने की तदबीरें सोचने लगे संयोग से उन्हें मौका भी जल्द हाथ आ लगा।

किशवरकुशा दोयम ने बाग़ियों को कुचलने के लिए अब की एक ज़बर्दस्त फ़ौज रवाना की और मीरशुजा को उसका सिपहसालार बनाया जो लड़ाई के मैदान में अपने वक़्त का इसफ़ंदियार था सरदार नमकख़ोर ने यह ख़बर पायी तो हाथ-पाँव फूल गये। मीरशुजा के मुकाबले में आना अपनी हार को बुलाना था। आख़िरकार यह राय तय पाई कि इस जगह से आबादी का निशान मिटाकर हम लोग क़िलेबन्द हो जायँ। उस वक़्त नौजवान मसऊद ने उठकर बड़े पुरजोष लहजे में कहा—

‘नहीं, हम क़िलेबन्द न होंगे, हम मैदान में रहेंगे और हाथोंहाथ दुश्मन का मुक़ाबला करेंगे। हमारे सीनों की हड्डियाँ ऐसी कमज़ोर नहीं हैं कि तीर-तुपुक के निशाने बर्दाश्त न कर सकें। किलेबन्द होना इस बात का एलान है कि हम आमने-सामने नहीं लड़ सकते। क्या आप लोग, जो शाह बामुराद के नामलेवा हैं, भूल गये कि इसी मुल्क़ पर उसने अपने ख़ानदान के तीन लाख सपूतों को फूल की तरह चढ़ा दिया? नहीं, हम हरगिज़ किलेबन्द न होंगे। हम दुश्मन के मुक़ाबले में ताल ठोककर आएँगे और अगर खुदा इंसाफ़ करनेवाला है तो ज़रूर हमारी तलवारें दुश्मनों से गले मिलेंगी और हमारी बर्छियाँ उनके पहलू में जगह पाएँगी।’

सैकड़ों निगाहें मसऊद के पुरज़ोर चेहरे की तरफ़ उठ गयीं। सरदारों की त्योरियों पर बल पड़ गये और सिपाहियों के सीने जोश से धड़कने लगे। सरदार नमकख़ोर ने उसे गले से लगा लिया और बोले—मसऊद, तेरी हिम्मत और हौसले की दाद देता हूं। तू हमारी फ़ौज की शान है। तेरी सलाह मर्दाना सलाह है। बेशक हम किलेबन्द न होंगे। हम दुश्मन के मुक़ाबले में ताल ठोंककर आएँगे और अपने प्यारे जन्नतनिशाँ के लिए अपना खून पानी की तरह बहायेंगे। तू हमारे लिए आगे-आगे चलने वाली मशाल है और हम सब आज इसी रोशनी में क़दम आगे बढ़ायेंगे।

मसऊद ने चुने हुए सिपाहियों का एक दस्ता तैयार किया और कुछ इस दम-खम और कुछ इस जोशोख़रोश से मीरशुजा पर टूटा कि उसका सारी फ़ौज में खलबली पड़ गयी। सरदार नमकख़ोर ने जब देखा कि शाही फ़ौज के क़दम डगमगा रहे हैं, तो अपनी पूरी ताक़त से बादल और बिजली की तरह लपका और तेग़ों से तेग़े और बर्छियों से बर्छियाँ खड़कने लगीं। तीन घंटे तक बला का शोर मचा रहा, यहाँ कि शाही फ़ौज के क़दम उखड़ गये और वह सिपाही जिसकी तलवार मीरशुजा के गले मिली मसऊद था। तब सरदारी फ़ौज और अफसर सब के सब लूट के माल पर टूटे और मसऊद ज़ख़्मों से चूर और खून में रंगा हुआ अपने कुछ जान पर खेलनेवाले दोस्तों के साथ मस्क़ात के क़िले की तरफ़ लौटा मगर जब होश ने आँखें खोलीं और हवास ठिकाने हुआ तो क्या देखता है कि मैं एक सदे हुए कमरे में मखमली गद्दे पर लेटा हुआ हूँ फूलों की सुहानी महक और लम्बी छरहरी सुन्दरियों के जमघट से कमरा चमन बना हुआ था। ताज्जुब से इधर-उधर ताकने लगा कि इतने में एक अप्सरा-जैसी सुन्दर युवती तश्त में फूलों का हार लिए धीरे-धीरे आती हुई दिखायी दी कि जैसे बहार फूलों की डाली पेश करने आ रही है। उसे देखते उन लंबी छरहरी सुन्दरियों ने आँखें बिछायीं और उसकी हिनाई हथेली को चूमा। मसऊद देखते ही पहचान गया। यह मलिका शेर अफ़गन थी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book