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वरदान (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :259
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8670
आईएसबीएन :978-1-61301-144

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‘वरदान’ दो प्रेमियों की कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले...


कहारों ने अपनी समझ में मार-पीट का बदला लिया। बेचारे समझे कि मुंशीजी इस नुकसान के लिये कमलाचरण को बुरा-भला कहेंगे, परन्तु मुंशीजी ने यह समाचार सुना तो भौंचक्के-से रह गये। उन्हीं जानवरों पर कमलाचरण प्राण देता था, आज अकस्मात् क्या कायापलट हो गयी? अवश्य कुछ भेद है। कहार से कहा– बच्चे को भेज दो।

एक मिनट में कहार ने आकर कहा– हजुर, दरवाजा भीतर से बन्द है। बहुत खटखटाया, बोलते ही नहीं।

इतना सुनना था कि मुंशीजी का रुधिर शुष्क हो गया। झट सन्देह हुआ कि बच्चे ने विष खा लिया। आज एक जहर खिलाने के मुकदमें का फैसला किया था। नंगे, पाँव दौड़े और बन्द कमरे के किवाड़ पर बलपूर्वक लात मारी और कहा– बच्चा! बच्चा! यह कहते-कहते गला रुँध गया। कमलाचरण पिता की वाणी पहिचान कर झट उठा और अपने आँसूं पोंछकर किवाड़ खोल दिया। परन्तु उसे कितना आश्चर्य हुआ, जब मुंशीजी ने धिक्कार, फटकार के बदले उसे हृदय से लगा लिया और व्याकुल होकर पूछा-बच्चा, तुम्हें मेरे सिर की कसम, बता दो तुमने कुछ खा तो नहीं लिया? कमलाचरण ने इस प्रश्न का अर्थ समझने के लिये मुंशीजी की ओर आँखें उठायीं तो उनमें जल भरा था, मुंशीजी को पूरा विश्वास हो गया कि अवश्य विपत्ति का सामना हुआ। एक कहार से कहा– डाक्टर साहब को बुला ला। कहना, अभी चलिये।

अब जाकर दुर्बुद्वि कमला ने पिता की इस घबराहट का अर्थ समझा। दौड़कर उनसे लिपट गया और बोला– आपको भ्रम हुआ है। आपके सिर की कसम, मैं बहुत अच्छी तरह हूँ।

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