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वरदान (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :259
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8670
आईएसबीएन :978-1-61301-144

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‘वरदान’ दो प्रेमियों की कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले...


सन्ध्या-समय गाँव की सब स्त्रियाँ हमारे यहाँ खेलने आयीं। माताजी ने उन्हें बड़े आदर से बैठाया। रंग खेला, पान बाँटा। मैं मारे भय के बाहर न निकली। इस प्रकार छुट्टी मिली। अब मुझे ध्यान आया कि माधवी दोपहर से गायब है। मैंने सोचा था शायद गाँव में होली खेलने गयी हो। परन्तु इन स्त्रियों के संग न थी। तुलसा अभी तक चुपचाप खिड़की की ओर मुँह किए बैठी थी। दीपक में बत्ती पड़ रही थी कि वह अकस्मात् उठी, मेरे चरणों पर गिर पड़ी और फूट-फूटकर रोने लगी। मैंने खिड़की की ओर झाँका तो देखती हूँ कि आगे-आगे महाराज, उसके पीछे राधा और सबसे पीछे रामदीन पांडे चल रहे हैं। गाँव के बहुत से आदमी उनके संग हैं। राधा का बदन कुम्हलाया हुआ है। लालाजी ने ज्योंही सुना कि राधा आ गया, चट बाहर निकल आये और बड़े स्नेह से उसको कण्ठ से लगा लिया, जैसे कोई अपने पुत्र को गले से लगाता है। राधा चिल्ला-चिल्लाकर रोने लगा। तुलसा से भी न रहा गया। वह सीढ़ियों से उतरी और लालाजी के चरणों में गिर पड़ी। लालाजी ने उसे भी बड़े प्रेम से उठाया। मेरी आँखों में भी उस समय आँसू न रुक सके। गाँव के बहुत से मनुष्य रो रहे थे। बड़ा करुणा-पूर्ण दृश्य था। लालाजी के नेत्रों में मैंने कभी आँसू न देखे थे। वे इस समय देखे। रामदीन पाण्डेय मस्तक झुकाये ऐसा खड़ा था, माना गौ-हत्या की हो। उसने कहा– मेरे रुपए मिल गये, पर इच्छा है, इनसे तुलसा के लिए एक गाय ले दूँ।

राधा और तुलसा दोनों अपने घर गये। परन्तु थोड़ी देर में तुलसा माधवी का हाथ पकड़े हँसती हुई मेरे घर आई बोली– इनसे पूछो, ये अब तक कहाँ थीं?

मैं– कहाँ थी? दोपहर से गायब हो?

माधवी– यहीं तो थी।

मैं– यहाँ कहाँ थीं? मैंने तो दोपहर से नहीं देखा। सच-सच बता दो मैं रुष्ट न होऊँगी।

माधवी– तुलसा के घर तो चली गयी थी।

मैं– तुलसा तो यहाँ बैठी है, वहाँ अकेली क्या सोती रहीं?

तुलसा– (हँसकर) सोती काहे को, जागती रही। भोजन बनाती रही, बरतन चौका करती रही।

माधवी– हाँ, चौका बरतन करती रही। कोई तुम्हारा नौकर लगा हुआ है न!

ज्ञात हुआ कि जब मैंने महाराज को राधा को छुड़ाने के लिए भेजा था, तब से माधवी तुलसा के घर भोजन बनाने में लीन रही। उसके किवाड़ खोले। यहाँ से आटा, घी, शक्कर सब ले गयी। आग जलायी और पूड़ियाँ, कचौड़ियाँ, गुलगुले और मीठे समोसे सब बनाये। उसने सोचा था कि मैं यह सब बताकर चुपके से चली जाँऊगी। जब राधा और तुलसा जाएंगे, तो विस्मित होंगे कि कौन बना गया! पर स्यात् विलम्ब अधिक हो गया और अपराधी पकड़ लिया गया। देखा, कैसी सुशीला बाला है।

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