कविता संग्रह >> अंतस का संगीत अंतस का संगीतअंसार कम्बरी
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मंच पर धूम मचाने के लिए प्रसिद्ध कवि की सहज मन को छू लेने वाली कविताएँ
जहाँ उनके गीतों में
श्रृंगार, सौन्दर्य, देश भक्ति मिलती है, वहीं मजलूमों के दुख-दर्द और
उनकी व्यथा-कथा के शब्द चित्र भी दिखाई देते हैं, उन्होंने अपने गीतों में
पौराणिक संदर्भों का समावेश भी बड़ी कुशलता से किया है-
मैं
भगीरथ सा आगे चलूँगा मगर,
तुम-पतित
पावनी सी बहो तो सही।
मैं
भी दशरथ सा वरदान दूँगा तुम्हें,
युद्ध
में कैकेयी सी रहो तो सही।
एक
भी लांछन सिद्ध होगा नहीं,
अग्नि
में जानकी सी दहो तो सही।
कवि कल्पना जगत का अलौकिक
राजा होता है फिर भी उसका मन तृप्ति के घाट पर अतृप्त ही रहता है। जबकि वो
अच्छी तरह जानता है कि नदी मरुस्थल का छलावा और प्यास भटकाव है। एक गीत
में श्री क़म्बरी ने नदी और प्यास के रिश्तों का चित्रण बहुत ही सहज ढंग
से किया है। वस्तुत: प्यास एक ऐसा जज्बा है जिसे रोक पाना दुष्कर होता है।
जब प्यास मेनका के रूप में उपस्थित होती है तो विश्वामित्र जैसे महान ऋषि
की तपस्या भी भंग हो जाती है। कवि ने इस भाव को बड़ी उदात्तता के साथ
प्रस्तुत किया है। देखें-
फिर
नदी के पास लेकर आ गई,
मैं
न आता प्यास लेकर आ गई।
जागती
है प्यास तो सोती नहीं,
और
अपनी तीव्रता खोती नहीं।
वो
तपोवन हो या राजा का महल,
प्यास
की सीमा कोई होती नहीं।
हो
गये लाचार विश्वामित्र भी,
मेनका
मधुमास लेकर आ गई।
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