कविता संग्रह >> अंतस का संगीत अंतस का संगीतअंसार कम्बरी
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मंच पर धूम मचाने के लिए प्रसिद्ध कवि की सहज मन को छू लेने वाली कविताएँ
सृजनयात्रा में बहुधा ऐसी
स्थितियाँ भी आती हैं जब भाव पक्ष इतना तीव्र हो जाता है कि उसका
अभिव्यक्ति के साथ वांछित तारतम्य नहीं बन पाता और कुछ का कुछ व्यक्त होने
लगता है परन्तु श्री क़म्बरी किसी भी स्थिति में सहजता नहीं खोते और वह जो
कहना चाहते हैं बड़ी आसानी से कह जाते हैं, यह उनके काव्य का विशेष गुण है।
प्रस्तुत गीत से जुड़कर आप भी इसका अनुभव कर सकते हैं-
किसी
की आँख का काजल बरसता है
कोई
बादल उसे बहका गया शायद
अधर
की प्यास बुझती है
तो
मन की प्यास जगती है
जो
मन की प्यास जगती है
तो
अधरों पर सुलगती है
कोई
प्यासा भटकता है तटों पर
नदी
का जल उसे बहका गया शायद।
सामाजिक जीवन में
दिनों-दिन बढ़ रही मूल्यहीनता को चित्रित करने के लिए उन्होंने भौतिक
बिम्बों को भी इस कुशलता के साथ प्रयोग किया है कि श्रोता गीत से जुड़कर
गहरी संवेदना में डूब जाता है। मानवता के प्रति किये जा रहे उपेक्षापूर्ण
व्यवहार को अभिव्यक्ति देते हुये वो फरयादी के प्रश्न को जिस सहजता से
अस्तित्व में बनाये रखते हैं, दृष्टव्य है-
हम
खुली किताब हो गये
प्रश्न
थे जवाब हो गये
लोग
हमें बाँचते नहीं
देखते
हैं जाँचते नहीं
आवरण
नहीं है इसलिये
मूल्य
सही आँकते नहीं
शब्द
कह रहे हैं अर्थ से
व्यर्थ
बेनकाब हो गये
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