कविता संग्रह >> अंतस का संगीत अंतस का संगीतअंसार कम्बरी
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मंच पर धूम मचाने के लिए प्रसिद्ध कवि की सहज मन को छू लेने वाली कविताएँ
गीत का सम्बन्ध हृदय से
है, मस्तिष्क तो केवल ऊपरी साज-सज्जा का काम भर ही करता है। श्री क़म्बरी
अभिव्यक्ति का निरूपण हृदय और मस्तिष्क के अद्भुत समन्वय के साथ करते
हैं। उनके गीतों में जहाँ हृदय पूरी तरह से उपस्थित है, वहीं मस्तिष्क
शिल्प को मनोनुकूल बनाये रखने में समर्थ है। इसीलिये उनके गीत श्रोताओं के
अंतःपटल पर भाव चित्र बनकर उभरते हैं-
मेरा
उसका परिचय इतना वो नदिया है, मैं मरुथल हूँ
उस
पर तैरें दीप शिखायें सूनी - सूनी मेरी रातें
उसके
तट पर चहल-पहल है कौन करेगा मुझसे बातें
मेरा
उसका अन्तर इतना वो बस्ती है, मैं जंगल हूँ
बौद्धिक बहेलियों के
व्याकरणी जाल 'गीत-पंछी' को भरमा नहीं सकते। श्री क़म्बरी इस बात को बखूबी
समझते हैं, इसीलिये वो अपने गीतों में दुनियावी अभिव्यक्ति को भी सूफियाना
रंग में इस प्रकार प्रस्तुत करते हैं कि श्रोता कल्पना के पंखों के सहारे
धरती से आकाश की दूरी बड़ी आसानी से तय कर लेता है और कहीं भ्रमित नहीं
होता। सच के समर्थन में विषपान करने को तत्पर श्री क़म्बरी अभिमान से दूर
रहने की कामना करते हुये कहते हैं-
शब्द-शब्द
संधान करूँ मैं
सच
के लिये विषपान करूँ मैं
मेरा
मान बढ़े कविता से
पर
न कभी अभिमान करूँ मैं
आखर
पंछी अम्बर छूते
मुझको
वो पर देना
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