कविता संग्रह >> अंतस का संगीत अंतस का संगीतअंसार कम्बरी
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मंच पर धूम मचाने के लिए प्रसिद्ध कवि की सहज मन को छू लेने वाली कविताएँ
जंगल-जंगल नाचते, जगह-गह
पर मोर।
नगर-नगर में बस रहे,
घर-घर आदमखोर ।।21
क़ुर्बानी के बाद भी, दिल
में रहा मलाल।
उन्हें मजा आया नहीं,
बकरा हुआ हलाल।।22
अभी हमारे नाम को, क्यों
छापें अखबार।
नहीं किया हमने अभी, कोई
भ्रष्टाचार।।23
अपने दिन तो 'क़म्बरी',
इतने हैं प्रतिकूल।
सर पर भारी बोझ है, पाँव
तले हैं शूल।।24
समझ न पाया आज तक, विधि
का मायाजाल।
मृगनयनी की चाह थी, मिला
मुझे मृगछाल।।25
मुझसा मिला न आदमी, किससे
करता बात।
जिसको देखो पूछता, मुझसे
मेरी जात।।26
मेरे चेहरे से रखो, अपना
दर्पण दूर।
पीड़ा मेरी देखकर, हो
जायेगा चूर।।27
मन वीणा के 'क़म्बरी',
ऐसे टूटे तार।
लाख चढ़ाये तार पर, नहीं
हुई झंकार।।28
संकट में जब हम फँसे,
दोस्त हुये सब मौन।
चर्चा जब मेरी चली, लगे
पूछने कौन।।29
रंग महल देखे कभी, देखे
कभी गुलाब।
पूरा हुआ न एक भी, ख़्वाव
हो गये ख्वाब।।30
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