कविता संग्रह >> अंतस का संगीत अंतस का संगीतअंसार कम्बरी
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मंच पर धूम मचाने के लिए प्रसिद्ध कवि की सहज मन को छू लेने वाली कविताएँ
सूरज जैसा ताप है, सागर
जैसी प्यास।
ये भी अपने पास है, वो भी
अपने पास।।31
जाने कैसे मोड़ पर, ले आई
तक़दीर।
यहाँ न कोई हर्ष है, और न
कोई पीर।।32
चार क़दम भी 'क़म्बरी',
चलना है दुश्वार।
काँधे वाले बोझ से, भारी
मन का भार।।33
मुझको होता एक सा, सभी
जगह आभास।
चाहे सिंहासन मिले, चाहे
हो वनवास।।34
अब तो अपने हाल पर, होता
नहीं मलाल।
जैसा सबका हाल है, वैसा
अपना हाल।।35
भले बुरे की देश में,
कैसे हो पहचान।
डाकू का भी हो रहा, संसद
में सम्मान।।36
चाहे वो अपमान हो, चाहे
हो सम्मान।
संत पुरुष तो 'क़म्बरी',
रहता एक समान।।37
यह मत सोचो 'क़म्बरी',
क्या होगा परिणाम।
कर्म हमारा धर्म है, देना
उसका काम।।38
चाहे वो दुष्कर्म हो,
चाहे हो सत्कर्म।
धन के पीछे भागना, आज हुआ
है धर्म।।39
सुख-सुविधा के कर लिये,
जमा सभी सामान।
कौड़ी पास न प्रेम की,
बनते हैं धनवान।।40
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