कविता संग्रह >> अंतस का संगीत अंतस का संगीतअंसार कम्बरी
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मंच पर धूम मचाने के लिए प्रसिद्ध कवि की सहज मन को छू लेने वाली कविताएँ
रख ली सच्चे प्रेम की,
ताजमहल ने लाज।
इसीलिये माना इसे, दुनिया
ने सरताज।।131
शाहजहाँ की आत्मा, होगी
बहुत निराश।
विकट प्रदूषण कर रहा,
ताजमहल का नाश।।132
देख-देख पर्यावरण, बहा
रहा है नीर।
ताजमहल किससे कहे, अपने
मन की पीर।।133
वो कविता करते नहीं, करते
हैं छलछंद।
लगा रहे हैं टाट में,
मखमल के पैबंद।।134
जिसका ऊँचा भाव है, वही
बड़ा फनकार।
इसीलिये होने लगा, कविता
का व्यापार।।135
ढाई आखर छोड़ जब, पढ़ते रहे
किताब।
मन में उठे सवाल का, कैसे
मिले जवाब।।136
ऐसे गीत सुनाइये, रचिये
ऐसे छंद।
शब्द-शब्द में अर्थ हो,
अर्थ-अर्थ आनन्द।।137
आते-आते कंठ तक, मौन हुये
संवाद।
आखों-ओंखों हो गया, अंतस
का अनुवाद।।138
आज न जाने किस तरह, उसने
किया सिंगार।
ठगे-ठगे हम रह गये, उसका
रूप निहार।।139
प्रियतम मेरा चाँद सा, जब
कमरे में आय।
अँधियारा भी दूर हो, दीपक
भी शरमाय।।140
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