कविता संग्रह >> अंतस का संगीत अंतस का संगीतअंसार कम्बरी
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मंच पर धूम मचाने के लिए प्रसिद्ध कवि की सहज मन को छू लेने वाली कविताएँ
खुसरो, मीरा, जायसी,
तुलसी, सूर, कबीर।
इस युग में मिलते नहीं,
ऐसे संत-फ़क़ीर।।141
सूफी-संत चले गये, सब
जंगल की ओर।
मंदिर-मस्जिद में मिले,
रंगबिरंगे चोर।।142
तुम्हें मुबारक हों महल,
तुम्हें मुबारक ताज।
हम फकीर हें 'क़म्बरी',
करें दिलों पर राज।।143
चाहे जितना 'क़म्बरी',
होते रहो प्रसिद्ध।
घर का जोगी जोगड़ा, आन
गाँव का सिद्ध।।144
प्राण-प्रतिष्ठा के बिना,
फूल चढ़े या हार।
प्रतिमायें करती नहीं,
पूजन को स्वीकार।।145
भक्तजनों का 'कम्बरी'
कैसे हो उद्धार।
मंदिर-मंदिर हो रहा, पूजन
का व्यापार।।146
धर्मों वाली रोटियाँ,
व्यर्थ रहे हैं सेंक।
जब सबको मालूम है, सत्य
धर्म है एक।।147
मायावी संसार की, माया
अपरम्पार।
अपनी ही तस्वीर पर, डाल
रहे हैं हार।।148
पाप-पुण्य यूँ 'कम्बरी'
अलग-अलग हैं रंग।
पापहु सबके संग है,
पुण्यहु सबके संग।।149
सत्य-कर्म तो कीजिये, हो
जायेगा नाम।
वंश-गोत्र से आपका, नहीं
चलेगा काम।।150
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