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धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार

अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

प्रश्न-- आदमी जब पागल हो जाता है उसकी क्या हालत है?

उत्तर-- हां, अगर आदमी जब पागल हो जाता है तो आदमी अब अकेला स्मृति रह गया, उसे अब बिलकुल भी होश नहीं है अपने स्व की। केवल मेमोरी रह गयी। आप हैरान होंगे, वह जिस दिन पागल होता है उस दिन के बाद की उसकी कोई मेमोरी नहीं रहती है, उसके पहले की ही मेमोरी रहती है अगर एक आदमी आज सुबह पागल हो गया तो वह जितनी बातें करेगा वह आज के सुबह के पहले की हैं, आज के सुबह के बाद की कोई बात नहीं करेगा। आज के सुबह के बाद की कोई मेमोरी नहीं बन रही। अब आज के सुबह के पहले की सब मेमोरी होगी, उन्हीं को दोहराएगा। उन्हीं को बोलेगा, उनकी बकवास करेगा, वह वही बातें करता रहेगा। उसने होश बिलकुल खो दिया और जिस घड़ी उसने होश खो दिया, उस क्षण तक जितनी मेमोरी है, अब वही रिपीट होती रहेगी। और इसीलिए वह हमको पागल दिखेगा क्योंकि यह हमेशा असंगत होगा और वर्तमान में उसके ऊपर कोई प्रभाव पड़ नहीं रहे। उसके सब प्रभाव पीछे के रह गए हैं। इसीलिए पागल में और मुक्त में करीबी अनुभव एक सी कुछ बातें मालूम होंगी। एक में सिर्फ पीछे के अनुभव रह गए हैं, वर्तमान के कोई अनुभव नहीं पैदा हो रहे हैं। वह भी हमको पागल लगेगा क्योंकि वर्तमान से उनकी कोई संगति नहीं है। और मुक्त और सिद्ध भी हमको कुछ न कुछ पागल प्रतीत होगा क्योंकि न उसमें अतीत के कोई स्मरण रह गए हैं, न भविष्य के, न वर्तमान के। उसमें भी हमें थोड़ा-सा पागल की झलक मालूम होगी।

इसलिए सारे साधुओं को, सारे संतों को हम चाहे कितना ही आदर हैं, हमको थोड़ा बहुत यह शक बना ही रहता है कि कुछ पागल तो नहीं है। हमारा जो भाव है वह कहीं न कहीं उनके पागल होने का बना रहता है और कहीं किसी किनारे पर वह पागल के करीब मालूम होते हैं। उनकी आंख में भी वही वैक्यूम दिखाई पडे़गा जो पागल की आंख में दिखाई देता है। वही वैक्यूम--वही आपको देखते हुए भी जैसे आपको नहीं देख रहे हैं, वही बात। आपके बिलकुल करीब होकर भी जैसे आप दूर हों, वही बात। आंख में वैक्यूम मालूम होगा, जैसे आपको कोई प्रतिबिंब उनकी आंख में नहीं बनता है। आपको वह कोई मेमोरी नहीं पकड़ा रहे हैं। इसलिए बडे़ से बडे़ सिद्ध की आंख में झांककर जो आपको पहला अनुभव होगा, वह पागल का होगा। तो आंखें जो अनुभव होगा वह पागल होगा। तो थोड़ा सा दोनों में करीब ही बात है। दोनों में स्मृति का एक संबंध एक सा हो गया है। एक स्मृतियां टूट गई हैं विक्षोभ के कारण। उसके पहले जितनी बनी हैं वह विक्षुब्ध उसमें तैर रही हैं। उसका अब जीवन असंगत हो गया है। एक में स्मृतियां टूट गई हैं अविक्षुब्ध, शांति के कारण। उसमें भी कुछ लहरें नहीं उठ रही हैं। एक विक्षोभ के कारण सब टूट खंडित हो गया है। एक में शांति के कारण सब खंडित हो गया है। दोनों बिलकुल अलग कोनों पर खडे़ लोग हैं, लेकिन दोनों में एक बात कहीं कुछ समान है। इसलिए भक्त उनको, जिनका भक्त है, साधु समझ लेते हैं, गैर भक्त उसको पागल समझते रहते हैं। तो कोई अंतर नहीं पड़ रहा है।

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