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धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार

अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

प्रश्न-- अस्पष्ट

उत्तर-- बहुत फर्क है। फर्क उतना ही है कि हिप्नोसिस जो है, सम्मोहित जो कर रहा है, इस सम्मोहन में भी घटना करीब-करीब वैसी ही घट रही है। जैसे स्वयं ध्यान करने पर घटेगी-- करीब-करीब वैसे ही। इसमें भी सूक्ष्म शरीर बाहर निकाला जा सकता है, भेजा जा सकता है, देखा जा सकता है, लेकिन यह दूसरे के द्वारा इनडयूस्टहै और जबर्दस्ती है और फोर्स्ड है। यह दूसरे के द्वारा आपमें की गई घटना है। दूसरे के द्वारा की गई घटना से आपको लाभ नहीं है, शायद नुकसान है। आपको कोई लाभ नहीं है। आपके कुछ साइकिक काम करवा ले सकता है लेकिन आपको कोई लाभ नहीं, वरन आपको नुकसान है। आपकी जो अपने रिदम और जर्मनी है आपके साइकिक शरीर की, उसको इसके प्रयोग से नुकसान पहुंचेगा। और जब स्वयं आप अपने प्रयोग से सहज बाहर निकलते हैं तो आपको नुकसान नहीं है, बल्कि अपने भीतर के कुछ राजों कुछ रहस्यों का अनुभव होता है। हिप्नोसिस बेहोशी है, बेहोशी में आपमें कुछ होता है और समाधि परिपूर्ण जागरूकता है। जागरूकता में कुछ हो रहा है। जागरूकता में जब कुछ होता है स्वयं के भीतर तो आप अपने जगत और जीवन के रहस्य के कुछ नए तथ्यों से परिचित होते हैं, वह परिचय आपको आत्मसाधना में सहयोगी होता है। हिप्नोसिस में आप तो परिचित होते नहीं, आप तो बेहोश हैं, आप को कोई लाभ नहीं होता है। लेकिन घटना करीब-करीब एक सी घटती है।

पुरानी स्मृतियां जगानी हों, तो हिप्नोटाइज के बिना कोई रास्ता नहीं है या फिर अटो-हिप्नोटाइज, अपने को खुद करना पडे़ तब कोई रास्ता है। इस मुल्क में हिप्नोटिज्म का प्रयोग बहुत प्राचीन है। लेकिन उसका उपयोग उस ढंग से कभी नहीं किया गया जैसा पश्चिम में कर रहे हैं। इस मुल्क में हिप्नोटिज्म का प्रयोग भी साधना के पक्ष में किया गया। हिप्नोटिज्म के माध्यम से व्यक्ति को कई सहायताएं पहुंचाई जा सकती हैं साधना में। वह सहायता इस मुल्क में पहुंचाई गई। हिप्नोटिज्म का और कोई प्रयोग कभी नहीं हुआ है। पश्चिम में वह उसके दूसरे प्रयोग शुरू किए हैं क्योंकि उनकी आत्मसाधना से उनका कोई संबंध नहीं है। तो वहां घातक परिणाम आने शुरू हुए। अभी तो उन्होंने वहां अमरीका में हिप्नोटिज्म के खिलाफ एक कानून भी विचारा है क्योंकि उसके बहुत घातक परिणाम हो सकते हैं।

बंबई
दिनांक ७ मई १९६८

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