धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार अमृत द्वारओशो
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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ
और तभी एक अप्सरा नाचती हुई आती है। वह हाथ में एक जीवन के रस की प्याली लिए हुए है। जीवन रस की प्याली भरे हुए है। और वह आकर कहती है, जीवन रस लेंगे? जीवन रस पीएंगे? बुद्ध ने तो बिलकुल पीठ फेर ली और आँख बंद कर ली और कहा, जीवन का नाम न लेना। जीवन तो दुःख है, जीवन तो पीड़ा है। जीवन तो असार है, नाम न लें यहाँ जीवन का। यह जीवन ही बंधन है। हटो यहाँ से दूर। कहा कि मुझे बाहर ले चलो, मैं यहाँ नहीं बैठना चाहता हूँ। जहाँ जीवन की चर्चा होती है, वहाँ भी नहीं रुकना चाहता हूँ। मुझे नहीं पीना है। मैंने बहुत देख लिया है, जीवन बहुत कड़वा है। कन्फ्यूशियस आधी आँखों से देख भी रहा है, आधी आँखें बद भी किए है। उसने कहा, एक बूँद तो कम से कम लेकर देख लूं। क्योंकि बिना पीए कह देना कि कड़वा है, अति है, एक्सट्रीम है। पूरा पी लेना दूसरा अति है। एक बूँद ले लेना गोल्डन मीन है। बीच का मार्ग है, मध्य मार्ग है। एक घूँट तो कम से कम लेकर देख लूँ। उसने एक घूँट उस जीवन रस की प्याली से पिया और कहा कि नहीं-नहीं कोई सार नहीं है। न तो आनंद पूर्ण है, न अपूर्ण है। उसने कहा, न आनंदपूर्ण है, न दुःखपूर्ण है। कोई सार नहीं है, कोई असार भी नहीं है। पियो तो ठीक न पियो तो ठीक। सब बराबर है। फिर उसने अपनी आधी आँखें बंद कर लीं, आधी खोल लीं और बैठ गया।
लाओत्से ने पूरी प्याली हाथ में ले ली। वैसे मुग्ध भाव से पूरे हाथ में ले लिया। उसने इतनी कृतज्ञता और ग्रेटीट्यूड से प्याली हाथ में ले ली। उसने न कुछ कहा, न कुछ बोला, न कोई वक्तव्य दिया। वह तो पूरी प्याली को पी गया। पूरी प्याली रख दी उसने नीचे और उठकर नाचने लगा। कन्फ्यूशियस उससे पूछने लगा कि क्या हुआ? बता। उसने कहा, जो हुआ, बताया नहीं जा सकता, लेकिन उसे केवल वे ही जानते हैं पूरे जीवन को पी लेते हैं। उसे केवल वे ही जानते हैं जो पूरे जीवन के साथ एकरस हो जाते हैं। उसे केवल वे ही जानते हैं जो पूरे जीवन में तल्लीन हो जाते हैं, पूरे जीवन में डूब जाते हैं। उसे वे नहीं जानते जो किनारे पर बैठे रहते हैं। जो जीवन की धारा में पूरी डुबकी ले लेते हैं वे ही जानते हैं। वह नाचने लगा। वह भाव-विभोर।
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