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धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार

अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

यह द्वार जब भी चलता है, ऐसे ही खुलता है। और यह द्वार जब भी बंद होता है तो ऐसे ही बंद हो जाता है। द्वार हम बंद किए बैठे हैं। हम अपनी पीठ किए बैठे हैं उस तरफ जहाँ मार्ग हो सकता है और उस तरफ आँखें किए बैठे हैं जहाँ मार्ग नहीं हो सकता है। इसलिए हम दुखी हैं, इसलिए हम पीड़ित हैं, इसलिए हम परेशान हैं। और इस परेशानी में, इस दुख में, इस पीडा में, इस अशांति में हम किन्हीं भी द्वारों पर भीख मांगने खड़े हो जाते हैं। हमें कोई रास्ता बताओ। और रास्ता बताने वाले लोग मिल जाते हैं। लेकिन मजा यह है ये वे ही लोग हैं रास्ता बताने वाले, जिसने ये सारी की सारी समस्या खड़ी कर दी है। वह फिर यही समझाते हैं कि जीवन असार है। जब तक जीवन को असार न समझोगे, शांत नहीं हो सकते। वह समझाते हैं, जीवन दुख है, छोड़ो जीवन को, हटो जीवन से। सन्यास की तरफ चलो, छोडो सब। पलायन करो। भागो जीवन से। तभी शांति मिलेगी। जीवन में कभी किसी को शांति मिली है? जीवन को छोड़ने से शांति मिलती है। संसार को छोड़ो तो शांति मिलती है। शरीर को छोड़ो तो शांति मिलती है। और छोड़ो तो इस समझाने के लिए व्यर्थ है, जानो। दुःख है, पीड़ा है, असार है, यह जानो।

मैंने सुना है एक रात स्वर्ग के एक रेस्तरां में बड़ा मजा हो गया। इधर जमीन पर देख-देख कर देवताओं ने भी रेस्तरां वगैरह खोल लिए होंगे स्वर्ग में। क्योंकि देवता आदमी से पीछे रह जाएं, इसका कोई कारण तो नहीं है। एक रेस्तरां है स्वर्ग का। लाओत्से, चीन का एक अदभुत विचारक बुद्ध को हाथ पकड़ के उस रेस्तरा में लिए चला जा रहा है। पीछे-पीछे कन्फ्यूसियस भी चला आ रहा है। वे तीनों जाकर टेबल पर बैठे गए हैं। बुद्ध तो आँखें बंद किए हैं, वे कहते हैं, मुझे बाहर जाने दो। मुझे कुछ रस रंग नहीं आता इन सब बातों में। वहाँ अप्सराएं नीचे चली जाती हैं। बुद्ध कहते हैं, मैंने बहुत अप्सराएं देखीं, मैंने बहुत नाच देखे, उन सबको, छोड़कर ही मैं जंगल भाग गया। मुझे नहीं देखने हैं ये सब। वे आँख बंद किए बैठे हैं। कन्फ्यूसियस आधी आँख खोलकर देख रहा है। क्योंकि कन्फ्यूसियस कहता था, अति एक्सट्रीम पर कभी नहीं होना चाहिए। न पूरी आँख खोलो, न पूरी आँख बंद करो। आधी से देखते रहो, आधी बंद भी रखो। जरूरत पड़े तो बंद में भी सम्मिलित हो जाओ, जरूरत पड़े तो खुले में भी सम्मिलित हो जाओ। वह आधी आँख से नाच भी देखे चला जाता है। आधी आँख से वह ध्यान में भी बना चला जाता है। लेकिन लाओत्से तो पूरा डावांडोल हुआ जा रहा है। टेबल ठोक रहा है, उसके पैर थिरक रहे हैं। वह तो नाच में लीन हो गया है, वह तो आनंद से भर गया है।

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