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धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार

अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

जब बूढ़े भिक्षु ने कोई उत्तर नहीं दिया तो उसने अपनी आँखें पोंछीं--क्रोध में उसकी आँखों में धुंध आ गयी है, खून आ गया है। लौटकर आँखें, खोलीं तो देखा कि वह बूढ़ा भिक्षु हाथ जोड़े आकाश की तरफ बैठा है और उसकी आँखों से आँसू से बहे जाते हैं। न मालूम किस आनंद से झरना बहा जाता है। उसने उसे हिलाया और कहा, क्या करते हो? लेकिन वह बूढ़ा कुछ बुदबुदा रहा है। वह कह रहा है कि हे भगवान, तेरी कृपा अनूठी है। हवाओं का क्या भरोसा, आंधियों का क्या भरोसा? वे पूरा झोपड़ा भी उडाकर ले जा सकती हैं। आधा बचाया तो जरूर तूने ही बचाया होगा, जरूर तूने ही बचाया होगा।

वह बुदबुदा रहा है उसके हाथ जुड़े हैं, उसकी आँखों से आँसू बहे चले जा रहे हैं, उसके चेहरे पर एक रोशनी झलक रही है। वह यह कह रहा है, जरूर आंधियों का क्या भरोसा। अंधी आंधियों का क्या भरोसा? पूरा झोपड़ा उड़ाकर ले जा सकती हैं। जरूर तूने रोका होगा, जरूर तूने बाधा दी होगी, नहीं तो आधा कैसे बचता? धन्यवाद। आधे झोपड़े से भी काम चल जाएगा। जब तूने समझा कि आधा हमारे लिए काफी है, तो हम कैसे समझें कि न काफी है? जरूर आधे से काम चल जाएगा। वह जवान तो क्रोध से भर गया इस बात को सुनकर और। फिर वे दोनों झोपड़े पर पहुँच गए हैं। बूढ़ा तो ऐसे आनंदमग्न घूम रहा है झोपड़े में, जैसे झोपड़ा महल हो गया हो, जैसे मिट्टी का झोपड़ा सोने का बन गया हो, झोपड़ा टूटा पडा है ध्वस्त और वह जवान क्रोध से भरा हुआ है।

फिर रात उतर आयी बादल चमकने लगे और बिजलियां गरजने लगीं और जोर की आवाजें आने लगी और वे दोनों सो गए हैं। जवान रात भर करवटें बदल रहा है। क्योंकि जो क्रोध घना होता जा रहा है। और ऊपर आकाश दिखाई पड़ रहा है, बिजली चमक रही हैं, पानी की बूंदें पड़ने लगी हैं, उसका क्रोध घना होता जा रहा है। अगर उसके वश में हो, अभी भगवान मिल जाए तो उनकी गर्दन दबा दे। सारी प्रार्थनाएं वापस ले लेना चाहता है, जो उसने कीं। और भगवान की जो सारी प्रशंसा की वह सब तोड़ देना चाहता है। उसका मन बड़े विद्रोह से भर गया है। लेकिन बूढ़ा गहरी शांति में सोया हुआ है। बिजली चमकती है तो उसके चेहरे पर जो प्रकाश आता है उससे लगता है जैसे न मालूम वह किस गहरी नींद में है। शायद नींद में नहीं, वह समाधि में है। शायद वह किसी गहरे गहन में है। वह न मालूम किन गहराइयों में डूबा हुआ है।

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