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धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार

अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

सुबह दोनों उठते है एक तो रात भर नहीं सोया है, दूसरा रास्ता भर सोया है। सुबह उठते ही उस जवान से फिर गालियां देनी शुरू कर दीं। वह बूढ़ा सुबह उठकर ही एक गीत लिख रहा है। वह गीत बड़ा प्रसिद्ध है। उस गीत के अर्थ बड़े अनूठे हैं। उस गीत में वह फिर कहता है कि हे परमात्मा, तू कितना अदभुत है। हमें पता नहीं था कि आधे छप्पर में सोने का आनंद क्या है। रात बिजलियां चमकती थीं तो मेरी नींद भी उनसे आलोकित हो जाती थी। आकाश में तारे दिखायी पड़े, कभी आँख खुली तो तारे दिखाई पड़ गए हैं। नींद में मैंने कभी तारे नहीं देखे थे, और मुझे खयाल भी न था कि शांति में तारे कितने प्रीतिपूर्ण मालूम होते हैं और उनसे कैसे संबंध जुड़ जाता है। दिन की रोशनी में, रात के जागरण में देखी थी तेरी प्रकृति, लेकिन नींद के मखमली पर्दे से कभी नहीं झांका था कि तेरी दुनिया इतनी अदभुत है। और अब तो मजा हो जाएगा। वर्षा आ गई है, बूंदें टपकेगी तेरी, आधे छप्पर में हम सोए भी रहेंगे, आधे छप्पर में तेरे बूंदों का संगीत भी रात भर नाचता रहेगा। और कभी आँख खुलेगी तो हम तेरी बूंदों को देख लेंगे। अगर हमें पता होता कि इतना आनंद है, तो हम तेरी हवाओं को कभी तकलीफ न देते, हम खुद ही आधा छप्पर तोड़ देते, लेकिन हमें यह पता ही नहीं था।

यह एक धार्मिक व्यक्ति की जीवन के प्रति दृष्टि है। न तो आपके मंदिर में जाने से आप धार्मिक होते हैं, न आपके मस्जिद में जाने से आप धार्मिक होते हैं, न आप गीता के चरणों में सिर रखने से धार्मिक होते हैं, और आप कुरान को सिर पर ढोने से धार्मिक होते हैं, न बुद्ध और महावीर की तस्वीरों के सामने घुटने टेकने से आप धार्मिक होते हैं। धार्मिक आदमी की तस्वीर यह है कि धार्मिक आदमी जीवन के कांटों में फूलों को देखने में समर्थ होता है, जीवन की पीड़ाओं में आनंद को देखने में समर्थ होता है। आधे उड़ गए छप्पर में आधे बचे छप्पर को देखने में समर्थ होता है।

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