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धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार

अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

लेकिन एक आदमी ने, जिसने पहली दफा वह प्रकाश लगाया, लोगों ने उससे पूछा, किसलिए लगाते हो यह प्रकाश? क्या मतलब है तुम्हारा? क्या दिखाना चाहते हो? और जिनके लिए लगाया था वह प्रकाश, वे ही उनको बुझा-बुझा जाते थे।

मैं कोई उपदेशक नहीं हूँ, लेकिन अगर मुझे दिखाता हो कि मेरी आँखों के सामने ही कोई अँधेरे में भटकता है, और मुझे दिखाता हो कि कोई पत्थर से टकराता है और मुझे दिखाता हो कि कोई दुख और पीड़ा के मार्गों को चुनता है, अंधकार के मार्गो को चुनता है, तो नहीं मैं उसे कोई उपदेश दे रहा हूँ, लेकिन एक दिया अपने घर के सामने जरूर रखता हूँ। हो सकता है उसे कुछ दिखाई पड़ जाए। हो सकता है जिन रास्तों पर वह भटक रहा है, उसे दिखाई पड़ जाए कि कटकाकीर्ण हैं, पत्थर से भरे हैं, अंधेरे में ले जाने वाले हैं। उसे कोई बात बोध में आ जाए। न ही कोई खुशी है इस बात की, कि कोई भीड़ सुनने आती है या नहीं आती है। कौन सुनता है, नहीं सुनता है, यह सवाल नहीं है। सवाल केवल इतना है कि मैं, मुझे दिखाई पड़ता हो कि जो रास्ता गलत है, अगर देखते हुए लोगों को उस पर चलने दूँ तो मैं हिंसा का भागीदार हूँ और पाप का जिम्मेवार हूँ। वह मैं नहीं होना चाहता हूँ इसलिए कुछ बातें मैं आप से कहता हूँ। लेकिन वे उपदेश नहीं हैं। आप मानने को बाध्य नहीं, स्वीकार करने को बाध्य नहीं हैं, अनुयायी बनने को वाध्य नहीं हैं, कोई शिष्यत्व स्वीकार करने को बाध्य नहीं हैं। आप कोशिश भी करें मुझे गुरु बनाने की तो मैं राजी नहीं हूँ। आप मेरे पीछे चलना चाहें तो मैं हाथ जोड़कर क्षमा मांग लेता हूँ। कोई को मैं पीछे चलने देता हूँ। अगर मेरी किताब को आप शास्त्र बनाना चाहें तो उनमें मैं आग लगवा दूंगा कि शास्त्र न बन पाए।

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