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धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार

अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

ये जो मैं कह रहा हूँ किन्हीं दूसरे शास्त्रों के विरोध में, वह किसी किताब के विरोध में नहीं कह रहा हूँ। यह भी पूछा है, उन्होंने कि आप शास्त्र के विरोध में कहते हैं और आपकी किताबें छपती हैं और बिकती हैं। किताबों के मैं विरोध में नहीं हूँ, शास्त्रों के विरोध में हूँ। शास्त्र और किताब में फर्क है। किताब सिर्फ निवेदन है, शास्त्र सत्य की घोषणा है प्रामाणिक। शास्त्र कहता है कि मुझे नहीं मानोगे तो नर्क जाओगे। शास्त्र कहता है जो मुझे मानता है वही स्वर्ग जाता है, शास्त्र कहता है, मुझ पर संदेह मत करना। वह प्रामाणिक है। वह ज्ञान की अंतिम रेखा है, उसके आगे आपको संदेह करने का सवाल नहीं है। किताब ऐसा कुछ भी नहीं कहती। किताब का तो विनम्र निवेदन है कि मुझे ऐसा लगता है, वह मैं पेश कर देता हूँ। गीता अगर किताब है तो बहुत सुंदर है और अगर शास्त्र है तो बहुत खतरनाक है। कुरान अगर किताब है तो बहुत स्वागत के योग्य है, लेकिन अगर शास्त्र है, तो ऐसे शास्त्रों की अब पृथ्वी पर कोई भी जरूरत नहीं है। अगर महावीर के वचन और बुद्ध के वचन किताबें हैं तो ठीक है, वे हमेशा-हमेशा पृथ्वी पर रहें, लोगों को उनसे लाभ होगा लेकिन अगर वह शास्त्र हैं तो उन्होंने काफी अहित लोगों का कर दिया है और अब उनकी कोई जरूरत नहीं है। मेरी बात आप समझे? मैं यह कह रहा हूँ कि किताबें तो ठीक हैं, शास्त्र ठीक हैं। अब कोई किताब पागलपन से भर जाती है और पागलपन की घोषणा करने लगती है किताब तो क्या करेगी, जब उसके अनुयायी करने लगते हैं। जब अनुयायी किसी किताब के संबंध में विक्षिप्त घोषणाएं करने लगते हैं तो वह शास्त्र हो जाती है। जब कोई किताब अथारिटी बन जाती है तब वह शास्त्र हो जाती है। मेरी कोई किताब शास्त्र नहीं है। दुनिया की कोई किताब शास्त्र नहीं है। सब किताबें, किताबें हैं। सब विनम्र निवेदन है उन लोगों के जिन्होंने कुछ जाना होगा, कुछ सोचा होगा, कुछ पहचाना होगा, उनके विनम्र निवेदन हैं। आप उन्हें मानने को बाध्य नहीं हैं, लेकिन आप उन्हें जानें, उनसे परिचित हों, यह ठीक है। लेकिन जो जान लें पढ़ कर और परिचित हो जाएं, उसको ज्ञान समझ लें तो गलती पर हैं। मैं यह नहीं कहता हूँ कि कोई किताबों को नहीं जाने। मैं यह कहता हूँ, किताबों से जो जाना जाएगा उसे कोई ज्ञान समझने की भूल न समझ ले। वह ज्ञान नहीं है। किताबों से जो जाना जाता है। वह इन्फर्मेशन है। सूचना है। नालिज नहीं है, ज्ञान नहीं है।

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