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धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार

अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546
आईएसबीएन :9781613014509

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ


जीवन

मेरे प्रिय आत्मन,

एक छोटी सी घटना से मैं अपनी आज की बात शुरू करना चाहता हूँ।

एक महानगरी में, सौ मंजिल एक मकान के ऊपर, सौवीं मंजिल से एक युवक कूद पड़ने की धमकी दे रहा था। उसने अपने द्वार, अपने कमरे के सब द्वार बंद कर रखे थे। बालकनी में खड़ा था। सौवीं मंजिल से कूदने के लिए तैयार, आत्महत्या करने को। उससे नीचे की मंजिल पर खड़े होकर लोग उससे प्रार्थना कर रहे थे कि आत्महत्या मत करो, रुक जाओ, यह क्या पागलपन कर रहे हो? लेकिन वह किसी की सुनने को राजी नहीं। तब एक बूढे आदमी ने उससे कहा, हमारी बात मत सुनो, लेकिन अपने मां बाप का खयाल करो कि उन पर क्या गुजरेगी। उस युवक ने कहा, न मेरा पिता है, न मेरी मां है। वे दोनों मुझसे पहले ही चल बसे। बूढ़े ने देखा कि बात तो व्यर्थ हो गयी। तो उसने कहा, कम से कम अपनी पत्नी का स्मरण करो, उस पर क्या बीतेगी। उस युवक ने कहा, मेरी कोई पत्नी नहीं, मैं अविवाहित हूँ। उस बूढ़े ने कहा, कम से कम अपनी प्रेयसी का खयाल करो। किसी को प्रेम करते होगे, उस पर क्या गुजरेगी? उस युवक ने कहा, प्रेयसी। मुझे प्रेम से घृणा है। स्त्री को मैं नर्क का द्वार समझता हूँ। मैं कोई स्त्री को प्रेम करता नहीं। मुझे कूद जाने दें।

अंतिम बात रह गयी थी कहने को। उस बूढ़े ने कहा, कूदने के पहले एक बात यह सोच लो, किसी की फिकर मत करो, लेकिन, अपनी तो फिकर करो। अपना जीवन नष्ट कर रहे हो? उस युवक ने कहा, काश। मुझे पता होता कि मैं कौन हूँ तो शायद नष्ट करने की बात ही न आती। लेकिन मुझे यह भी पता नहीं कि मैं कौन हूँ।

पता नहीं वह युवक कूद गया नहीं कूद गया, लेकिन उस युवक ने यह कहा कि मुझे यह भी पता नहीं कि मैं कौन हूँ। बचकर क्या करूंगा, जीवित रहकर भी क्या करूंगा? जिस जीवन में यह भी पता न हो कि हम कौन हैं, उस जीवन का मूल्य और अर्थ क्या रह जाता है।

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